भारत के
चंद्रयान-3 मिशन की कामयाबी ने पूरी दुनिया को एक बार फिर चांद की ओर रुख करने के लिए प्रोत्साहित किया है। जापानी स्पेस एजेंसी जाक्सा (Jaxa) का मून मिशन अगले कुछ दिनों में चंद्रमा पर लैंड करने की कोशिश करेगा। सोमवार को अमेरिका ने भी इस दिशा में कदम बढ़ा दिए। 50 साल के लंबे अंतराल के बाद अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (Nasa) का पेरेग्रीन 1 लूनर लैंडर (Peregrine 1 lunar lander) चांद के लिए रवाना हो गया। यूनाइटेड लॉन्च अलायंस के वल्कन सेंटौर रॉकेट ने इस लैंडर को लेकर उड़ान भरी।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (X) पर शेयर की गई जानकारी के अनुसार, सबकुछ योजना के अनुसार हुआ। अपने पहले ही लॉन्च में वल्कन का सेकंड स्टेज बूस्टर डीप स्पेस में जाने के बाद करीब 15 मिनट बाद ऑर्बिट में पहुंच गया।
फिलहाल यह अनुमान है कि पेरेग्रीन लूनर लैंडर 23 फरवरी को चंद्रमा के मध्य-अक्षांश क्षेत्र (mid-latitude region) पर लैंड करेगा। इस इलाके को साइनस विस्कोसिटैटिस या स्टिकनेस की खाड़ी कहा जाता है। यह मिशन इसलिए अहम हो जाता है क्योंकि करीब 50 साल बाद कोई अमेरिकी मिशन चांद पर उतरने जा रहा है।
अमेरिका ने साल 2022 में आर्टिमिस-1 मिशन को चांद पर रवाना किया था। लेकिन वह स्पेसक्राफ्ट चांद पर उतरा नहीं था। आर्टिमिस-1 ने चांद का चक्कर लगाया था। साल 2024 में नासा आर्टिमिस-2 मिशन को लॉन्च करने वाली है। आर्टिमिस-2 मिशन के तहत अंतरिक्ष यात्रियों को चांद पर भेजा जाएगा। हालांकि वो भी चांद पर लैंड करने के बजाए, उसका चक्कर लगाकर लौट आएंगे।
चंद्रमा पर लैंडिंग आसान काम नहीं है। अमेरिका, रूस, भारत समेत चुनिंदा देश ही चांद पर मिशन लैंड करा पाए हैं। चांद पर इंसानों को पहुंचाने वाला इकलौता देश अमेरिका है। उसने भी यह कारनामा 50 साल पहले कर दिया था। तब से अबतक चांद पर अमेरिका के प्राेग्राम सीमित रहे हैं।
पेरेग्रीन 1 लूनर लैंडर क्यों है अहम
पेरेग्रीन 1 लूनर लैंडर एक कमर्शल वेंचर है, जिसे स्पेस रोबोटिक्स फर्म एस्ट्रोबायोटिक ने डेवलप किया है। मिशन सफल होता है तो यह चांद पर किसी प्राइवेट कंपनी की पहली लैंडिंग होगी। इसके अलावा यह अपोलो 1972 मिशन के बाद अमेरिका की भी पहली सॉफ्ट लैंडिंग हो जाएगी।