आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का कमाल, व्‍हेल मछलियों से बात करेगा इंसान!

प्रोजेक्ट को सीटैसियन ट्रांसलेशन इनिशिएटिव (सीईटीआई) नाम दिया गया है। व्‍हेल की भाषा को डिकोड करने की संभावना के बारे में पहली बातचीत हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में हुई थी।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का कमाल, व्‍हेल मछलियों से बात करेगा इंसान!

यह प्रोजेक्‍ट सफल होता है, तो ऐसा पहली बार होगा, जब इंसान किसी अन्य प्रजाति की भाषा को समझेंगे।

ख़ास बातें
  • व्‍हेल कैसे संवाद करती हैं, इसे समझने के लिए वैज्ञानिक डेटा जुटा रहे हैं
  • इस प्रोजेक्ट को सीटैसियन ट्रांसलेशन इनिशिएटिव (सीईटीआई) नाम दिया गया है
  • प्रोजेक्‍ट सफल होता है, तो पहली बार इंसान अन्य प्रजाति की भाषा को समझेगा
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व्‍हेल को दुनिया के सबसे समझदार जीवों में से एक माना जाता है। ऐसे कई वाकये हैं, जब हमने इंसान और व्‍हेल के बीच के भावनात्‍मक र‍िश्‍ते के उदाहरण देखे हैं। अगर सबकुछ ठीक रहा, तो ऐसा हो सकता है कि साइंटिस्‍ट व्‍हेल की भाषा को डिकोड करने के करीब पहुंच जाएं। व्‍हेल कैसे संवाद करती हैं, इसे समझने के लिए आर्टिफ‍िशि‍यल इंटेल‍िजेंस यानी एआई की मदद से वैज्ञानिकों के एक इंटरडिसिप्लिनरी समूह ने डेटा जुटाना शुरू कर दिया है। इस प्रोजेक्ट को सीटैसियन ट्रांसलेशन इनिशिएटिव (सीईटीआई) नाम दिया गया है। व्‍हेल की भाषा को डिकोड करने की संभावना के बारे में पहली बातचीत हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में हुई थी। इसके लिए वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय समूह ने 2017 में रैडक्लिफ फैलोशिप में एक साल बिताया। इस डेटा की रिसर्च और कलेक्‍शन में साल 2020 में तेजी आई। अगर यह प्रोजेक्‍ट सफल होता है, तो ऐसा पहली बार होगा, जब इंसान किसी अन्य प्रजाति की भाषा को समझेंगे। इसके परिणामस्वरूप, इंसान, व्हेल के साथ संवाद करने के लिए एक सिस्‍टम का निर्माण भी कर सकता है। 

कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले में सिमंस इंस्‍ट‍िट्यूट फॉर द थिअरी ऑफ कंप्यूटिंग की निदेशक शफी गोल्डवासेर ने व्हेल के क्‍ल‍िकिंग साउंड की एक सीरीज को नोट किया, जो मोर्स कोड या फॉल्‍टी इलेक्ट्रॉनिक सर्किट के शोर के समान थी। उन्‍होंने न्यू यॉर्क की सिटी यूनिवर्सिटी के समुद्री जीवविज्ञानी डेविड ग्रुबर को आइडिया दिया कि इन क्‍लि‍किंग या कोडों के जरिए व्‍हेल की भाषा को ट्रांसलेट क‍िया जाए। इसके बाद इंपीरियल कॉलेज लंदन में पढ़ाने वाले एक इस्राइली कंप्यूटर वैज्ञानिक माइकल ब्रोंस्टीन ने कोडों और नैचुरल लैंग्‍वेज प्रोसेसिंग (एनएलपी) के बीच एक कड़ी को मानने पर विचार किया। इसके बाद बायोलॉजिस्ट शेन गेरो ने कैरेबियाई द्वीप डोमिनिका के आसपास से स्‍पर्म व्हेल कोडों की रिकॉर्डिंग की। ब्रोंस्टीन ने इस डेटा पर कुछ मशीन-लर्निंग एल्गोरिदम लागू किए। उन्होंने हकाई मैग्‍जीन को बताया क‍ि उन्‍हें ऐसा लगता था कि वे बहुत अच्छी तरह से काम कर रहे थे, लेकिन यह केवल प्रूफ ऑफ कॉन्‍सेप्‍ट था।

साइंटिस्‍ट और भाषाविद अभी नहीं जानते हैं कि जीवों की कोई भाषा होती है या नहीं। जानवरों के उच्चारण को केवल तभी भाषा कहा जा सकता है, जब उनके पास निश्चित अर्थ वाले स्वर, और साउंड को स्‍ट्रक्‍चर करने का तरीका हो। व्हेल आमतौर पर गहरे पानी में गोता लगाती हैं और एक लंबी दूरी पर संवाद करती हैं। इसलिए चेहरे की अभिव्यक्ति या शरीर की भाषा उनके कम्‍युनिकेशन को प्रभावित नहीं करती है। व्हेल की भाषा को समझना और कम्‍युनिकेट करना सीखना AI के लिए भी मुश्किल है। सबसे मशहूर AI-भाषा मॉडल, जीपीटी -3 में निहित है, जिसमें लगभग 175 बिलियन शब्दों का डेटाबेस है। इसकी तुलना में CETIके डेटाबेस में 100000 से कम स्‍पर्म व्हेल कोड हैं। वैज्ञानिकों ने अब डेटाबेस को चार अरब कोड तक बढ़ाने की योजना बनाई है।



 
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