भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने नेट निरपेक्षता (नेट न्यूट्रैलिटी) के पक्ष में अपनी बहु-प्रतीक्षित सिफारिशें जारी कर दी हैं। ट्राई ने अपनी सिफारिश में कहा है कि इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को नेट न्यूट्रैलिटी के 'मुख्य सिद्धांत' यानी 'इंटरनेट एक खुला मंच' पर कायम रहना चाहिए और किसी तरह के पक्षपात वाले करार नहीं करना चाहिए। ट्राई ने लाइसेंस नियमों में संशोधन की बात कही है और उसका कहना है कि इससे इंटरनेट आधारित सामग्री को लेकर किसी भी ग्राहक के साथ भेदभाव पर अंकुश लगेगा। ट्राई ने कहा है कि इंटरनेट की आजादी बनी रहनी चाहिए।
बता दें कि नेट न्यूट्रैलिटी के मुद्दे पर इंटरनेट सेवा प्रदाताओं और ऐप डेवलेपर के बीच लंबे समय से विवाद है। भारत में नेट निरपेक्षता के लिए कोई कानून नहीं है जबकि कई दूसरे देशों में नेट निरपेक्षता के पक्ष में कानून बन चुका है।
क्या है नेट न्यूट्रैलिटी?
नेट न्यूट्रैलिटी कोई परिभाषित परिस्थिति नहीं है। सिद्धांतों के आधार पर बात करें तो इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स को अपने नेटवर्क पर हर ट्रैफिक को एक समान तवज्जो देनी चाहिए।
नेट न्यूट्रैलिटी को कैसे नुकसान पहुंचा सकते हैं इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स?
इंटरनेट प्रोवाइडर्स पहले भी Skype जैसी वीडियो कॉलिंग सर्विसेज के लिए अलग से चार्ज लेने की बात कर चुके हैं। क्योंकि उन्हें लगता रहा है कि इस तरह के प्रोडक्ट्स उनके वॉयस कॉलिंग बिजनेस को नुकसान पहुंचाते हैं। यही नेट न्यूट्रैलिटी के कंसेप्ट के खिलाफ है जो सभी ट्रैफिक को बराबर तवज्जो देने की बात करता है।
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