स्टडी में रिसर्चर्स ने जनवरी 2022 से सितंबर 2024 तक का डेटा एनालाइज किया। इसमें कॉर्पोरेट प्रेस रिलीज, जॉब पोस्टिंग्स, कंज्यूमर कंप्लेंट्स और इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन्स जैसे UN की रिलीजेज को शामिल किया गया।
Photo Credit: Unsplash/ Tai Bui
AI अब सिर्फ चैटबॉट या कंटेंट टूल नहीं रहा, बल्कि धीरे-धीरे कॉर्पोरेट दुनिया का "ghost writer" बनता जा रहा है। Cell Press के Patterns जर्नल में पब्लिश एक नई स्टडी में खुलासा हुआ है कि कई कंपनियां अपनी प्रेस रिलीज और जॉब पोस्ट्स AI की मदद से लिख रही हैं। लगभग हर चार में से एक प्रेस रिलीज अब मशीन-जनरेटिड हो सकती है। यानी वो टेक्स्ट जो किसी PR एजेंसी या कॉर्पोरेट कम्युनिकेशन टीम के नाम से पब्लिश होता है, दरअसल AI टूल से आया होता है।
स्टडी में रिसर्चर्स ने जनवरी 2022 से सितंबर 2024 तक का डेटा एनालाइज किया। इसमें कॉर्पोरेट प्रेस रिलीज, जॉब पोस्टिंग्स, कंज्यूमर कंप्लेंट्स और इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन्स जैसे UN की रिलीजेज को शामिल किया गया। AI-डिटेक्शन टूल के जरिए पता लगाया गया कि इनमें से कितनी कंटेंट मशीन असिस्टेड थी। नतीजा चौंकाने वाला था, 2022 की तुलना में 2024 में AI-बेस्ड राइटिंग लगभग तीन गुना बढ़ चुका है।
सबसे दिलचस्प बात यह रही कि प्रेस रिलीज सेक्शन में AI का इस्तेमाल सबसे ज्यादा मिला। Newswire, PRWeb और PRNewswire जैसी बड़ी साइट्स पर डाले गए टेक्स्ट में करीब 25% AI जनरेटेड थे। साइंस और टेक्नोलॉजी कंपनियों में यह रेशियो और भी ज्यादा निकला। यानी अब कंपनी का नया प्रोडक्ट लॉन्च या बिजनेस अपडेट पहले AI ड्राफ्ट करता है और बाद में PR टीम उस पर एडिटिंग करती है।
रिपोर्ट ने ये भी बताया कि LinkedIn जैसी साइट्स पर बड़ी कंपनियों की जॉब पोस्ट्स में AI यूज कम है, लेकिन छोटे और मिड-लेवल बिजनेस में यह ट्रेंड बढ़ रहा है। लगभग 10% जॉब डिस्क्रिप्शन अब ChatGPT जैसे मॉडल से बनाए जाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इन कंपनियों के पास कथित तौर पर कंटेंट टीम या कॉपीराइटर्स रखने का बजट नहीं होता, तो AI उनकी जगह भर देता है।
स्टडी में पाया गया कि UN और अन्य सरकारी संस्थानों की प्रेस रिलीजों में भी AI यूज धीरे-धीरे बढ़ा है। 2023 में जहां ये रेशियो करीब 3% था, वहीं 2024 के आखिर तक यह 13% तक बढ़ गया। यानी अब AI सिर्फ मार्केटिंग या सोशल मीडिया तक सीमित नहीं रहा, बल्कि पॉलिसी-लेवल कम्युनिकेशन में भी एंट्री ले चुका है।
रिसर्चर्स ने ये भी माना कि उनका डिटेक्शन मॉडल हर केस में सटीक नहीं है। अगर किसी AI द्वारा लिखे गए टेक्स्ट को इंसान ने ज्यादा एडिट किया हो, तो उसे पूरी तरह ह्यूमन द्वारा लिखा गया मान लिया जा सकता है। इसका मतलब है कि असल प्रतिशत इससे भी ज्यादा हो सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि अगले कुछ सालों में ग्रोथ रेट थोड़ा धीमा जरूर होगा, लेकिन AI अब कंटेंट इकोसिस्टम का स्थायी हिस्सा बन चुका है।
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