क्‍या हैं सौर हवाएं, सोलर फ्लेयर और कोरोनल मास इजेक्शन? समझिए इनके बीच का फर्क

कोरोनल मास इजेक्शन या CME, सौर प्लाज्मा के बड़े बादल होते हैं।

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प्रेम त्रिपाठी, अपडेटेड: 27 मई 2022 13:52 IST
ख़ास बातें
  • अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (Nasa) ने इनके बारे में बताया है
  • इन एक्टिविटीज का असर कई बार पृथ्‍वी तक होता है
  • कोरोनल मास इजेक्‍शन को CME भी कहा जाता है

सोलर विंड या सौर हवाएं सूर्य के मैग्‍नेटिक फील्‍ड को अंतरिक्ष तक ले जाने में सहायक होती हैं।

पृथ्‍वी समेत बाकी ग्रहों को ऊर्जा देने वाले हमारे सूर्य में भी कई गतिविधियां होती रहती हैं। अक्‍सर हम ‘सोलर फ्लेयर', ‘कोरोनल मास इजेक्शन' और ‘सोलर विंड' जैसी घटनाओं के बारे में सुनते हैं और इनसे जुड़ी खबरें पढ़ते हैं। सूर्य में होने वाली इन एक्टिविटीज का असर कई बार पृथ्‍वी तक होता है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (Nasa) के नजरिए से आज हम इन तीन गतिविधियों के बारे में जानेंगे, साथ ही यह भी समझेंगे कि इनमें आपस में क्‍या अंतर है। 
 

कोरोनल मास इजेक्शन (CME)

कोरोनल मास इजेक्शन या CME, सौर प्लाज्मा के बड़े बादल होते हैं। सौर विस्फोट के बाद ये बादल अंतरिक्ष में सूर्य के मैग्‍नेटिक फील्‍ड में फैल जाते हैं। अंतरिक्ष में घूमने की वजह से इनका विस्‍तार होता है और अक्‍सर यह कई लाख मील की दूरी तक पहुंच जाते हैं। कई बार तो यह ग्रहों के मैग्‍नेटिक फील्‍ड से टकरा जाते हैं। जब इनकी दिशा की पृथ्‍वी की ओर होती है, तो यह जियो मैग्‍नेटिक यानी भू-चुंबकीय गड़बड़ी पैदा कर सकते हैं। इनकी वजह से सैटेलाइट्स में शॉर्ट सर्किट हो सकता है और पावर ग्रिड पर असर पड़ सकता है। इनका असर ज्‍यादा होने पर ये पृथ्‍वी की कक्षा में मौजूद अंतरिक्ष यात्रियों को भी खतरे में डाल सकते हैं। 
 

सोलर फ्लेयर

जब सूर्य की चुंबकीय ऊर्जा रिलीज होती है, तो उससे निकलने वाली रोशनी और पार्टिकल्‍स से सौर फ्लेयर्स बनते हैं। हमारे सौर मंडल में ये फ्लेयर्स अबतक के सबसे शक्तिशाली विस्फोट हैं, जिनमें अरबों हाइड्रोजन बमों की तुलना में ऊर्जा रिलीज होती है। इनमें मौजूद एनर्जेटिक पार्टिकल्‍स प्रकाश की गति से अपना सफर तय कोरोनल मास इजेक्शन भी होता है।
 

सोलर विंड 

सोलर विंड या सौर हवाएं सूर्य से न‍िकलर हर दिशा में बहती हैं। यह सूर्य के मैग्‍नेटिक फील्‍ड को अंतरिक्ष तक ले जाने में सहायक होती हैं। यह हवाएं पृथ्‍वी पर चलने वाली हवाओं की तुलना में बहुत कम घनी होती हैं, लेकिन इनमें बहुत तेज रफ्तार होती है। इसे आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि सौर हवाएं 20 लाख किलोमीटर प्रति घंटे से भी ज्‍यादा की रफ्तार से बहती हैं। यह इलेक्‍ट्रॉन और आयोनाइज्‍ड परमाणुओं से बनती हैं, जो सूर्य के मैग्‍नेटिक फील्‍ड के साथ तालमेल बैठाते हैं। सौर हवाएं जहां तक बहती हैं, वह सीमा ‘हेलिओस्फीयर' बनाती है। यह सूर्य का सबसे प्रभावित करने वाला क्षेत्र होता है। 
 
 

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