NASA Voyager spacecraft : अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (Nasa) ने 47 साल पुराने सैटेलाइट के साथ अंतरिक्ष में फिर से कॉन्टैक्ट किया है। यह संपर्क, वॉयजर-1 (Voyager) स्पेसक्राफ्ट के साथ हुआ है, जो अमेरिका की स्पेस हिस्ट्री का सबसे लंबा मिशन है। साल 1977 में नासा ने Voyager 1 और Voyager 2 स्पेसक्राफ्ट को कुछ हफ्तों के अंतराल में लॉन्च किया था। इस हिसाब से ये करीब 47 साल से वर्किंग हैं। वीओए की
रिपोर्ट के अनुसार, हाल के कुछ वर्षों में नासा को वॉयजर स्पेसक्राफ्ट के साथ संपर्क करने में मुश्किलें आ रही थीं। इसी साल अप्रैल में नासा ने बताया था कि वह 5 महीनों से ‘वॉयजर 1' स्पेसक्राफ्ट से कम्युनिकेट नहीं कर पा रही है।
स्पेसक्राफ्ट की बात नहीं समझ पा रहे थे साइंटिस्ट
रिपोर्ट के अनुसार, नासा के अधिकारियों का कहना था कि ‘वॉयजर 1' के ऑनबोर्ड कम्प्यूटर में एक चिप में खामी आ गई थी। इस वजह से स्पेसक्राफ्ट जो डेटा भेज रहा था, वो वैज्ञानिकों को समझ नहीं आ रहा था। हालांकि वैज्ञानिकों ने पढ़ने के तरीके में बदलाव किया और प्रॉब्लम कुछ हद तक ठीक हो गई।
इसके बाद अक्टूबर में फिर कम्युनिकेशन इशू आ गया। इसकी वजह से ‘वॉयजर 1' का डेटा देर से वैज्ञानिकों को मिल रहा था। वो प्रॉब्लम स्पेसक्राफ्ट के रेडियो ट्रांसमीटर सिस्टम से जुड़ी थी।
इसके बाद जब किसी वजह से नासा ने स्पेसक्राफ्ट से उसके हीटरों में से एक को ऑन करने को कहा तो वॉयजर 1 की फॉल्ट प्रोटेक्शन प्रणाली एक्टिवेट हो गई। इसका मकसद बिजली बचाना था। ऐसे हालात में स्पेसक्राफ्ट ने आमतौर पर भेजे जाने वाले रेडियो सिग्नलों के बजाए दूसरे तरह से सिग्नल भेजने शुरू कर दिए।
वह ऐसी स्थिति थी कि नासा को नॉर्मल एक्स-बैंड के बजाए एस-बैंड पर सिग्नल मिलने लगे। जब नासा ने उन्हें रिसीव करना शुरू किया तो स्पेसक्राफ्ट से फिर से डेटा मिलने लगा। नासा का कहना है कि एस-बैंड एक्स-बैंड की तुलना में बहुत कमजोर है, इसलिए वह काफी टाइम से एक्स-बैंड रेडियो कम्युनिकेशन सिस्टम को शुरू करने की कोशिश कर रहे थे। दिलचस्प यह है कि साल 1981 के बाद से नासा ने एस-बैंड का यूज नहीं किया। इसका मतलब है कि एजेंसी को 43 साल बाद वॉयजर 1 से दूसरे तरीके से सिग्नल मिले हैं।
Voyager 1 और Voyager 2 स्पेसक्राफ्ट को बृहस्पति और शनि ग्रह को टटोलने के लिए डिजाइन किया गया था। दोनों स्पेसक्राफ्टों ने अपना काम बखूबी पूरा किया। Voyager 2 तो साल 1989 में यूरेनस और नेप्च्युन के करीब भी पहुंचा था।