सूर्य को टटोल रहे वैज्ञानिक मिशन इसके बारे में रोज नई जानकारी जुटा रहे हैं। खगोलविदों ने सूर्य की सतह पर उल्कापिंडों (meteor) जैसी धारियां देखी हैं। इन्हें देखकर लगता है जैसे सूर्य की सतह पर बारिश हो रही है। यूरोपीय स्पेस एजेंसी के सोलर ऑर्बिटर स्पेसक्राफ्ट ने यह ऑब्जर्वेशन किया है। धारियों के बीच पहली बार सूर्य की सतह पर सौर तारे टूटते (solar shooting stars) हुए दिखाई दिए। यह पृथ्वी से दिखाई देने वाले टूटते तारों से कैसे अलग होते हैं? आइए जानते हैं।
रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी की
रिपोर्ट में बताया गया है कि सोलर शूटिंग स्टार्स, पृथ्वी से दिखने वाले टूटते तारों से अलग होते हैं। हम जिन टूटते हुए तारों को देखते हैं, वो अंतरिक्ष की धूल, चट्टानें और छोटे एस्टरॉयड हो सकते हैं, जो पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते ही जलने लग जाते हैं। सूर्य में जो उल्कापिंडों जैसी धारियां नजर आई हैं, वो प्लाज्मा के विशाल गुच्छे हैं।
रिपोर्ट कहती है कि पृथ्वी का वातावरण बहुत घना है। इस वजह से टूटते तारे हमारे ग्रह पर नहीं गिरते। सूर्य का वायुमंडल जिसे कोरोना कहते हैं, काफी पतला है। ऐसे में प्लाज्मा के गुच्छे सूर्य से अलग नहीं हो पाते और तारे की सतह पर ही बने रहते हैं।
वैज्ञानिकों को लगता है कि हालिया खोज से यह जानने में मदद मिल सकती है कि सूर्य का कोरोना उसके नीचे की परतों के मुकाबले ज्यादा गर्म क्यों है। यूरोपीय स्पेस एजेंसी के स्पेसक्राफ्ट ने सूर्य पर टूटते तारों को कोरोनल रेन की घटना के दौरान देखा था। इस घटना में प्लाज्मा काफी एक्टिव हो जाता है और इकट्ठा होने लगता है।
स्पेसक्राफ्ट ने जब घटना को कैमरे में कैद किया, तब वह सूर्य से 4.9 करोड़ किलोमीटर दूर था। यानी वह बुध ग्रह से भी ज्यादा नजदीक था सूर्य के। रिपोर्ट के अनुसार, यह घटना कुछ ही देर तक चली और उस दौरान सूर्य में जो गैस बन रही थी, वह 10 लाख डिग्री तक गर्म हो रही थी।