संयुक्त राष्ट्र (UN) की एक नई रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि जलवायु परिवर्तन (climate change) के विनाशकारी असर से बचने के लिए दुनिया को साल 2030 तक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में आधी कटौती करनी चाहिए। रिपोर्ट में कहा गया है अगले तीन साल में उत्सर्जन पीक पर नहीं पहुंचा, तो आने वाले वक्त में दुनिया क्लाइमेट से जुड़ी गंभीर घटनाओं का अनुभव करेगी। इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) ने कहा कि अगर तत्काल ऐक्शन नहीं लिया गया, तो दुनिया ग्लोबल वॉर्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने में नाकाम हो जाएगी। इससे भविष्य में और अधिक आग की घटनाएं होंगी। सूखा पड़ेगा और तूफान आएंगे। यह ज्यादातर कोरल रीफ्स को प्रभावित करेगा। निचले इलाके रहने लायक नहीं रहेंगे, जिसकी वजह से दुनिया भर में तनाव बढ़ेगा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के वर्तमान स्तर की वजह से दोगुने से अधिक गर्मी पैदा होने की संभावना है। इससे साल 2100 तक तापमान में लगभग 3.2 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हो सकती है। रिपोर्ट कहती है कि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए लगभग हर देश को वॉलंटियर करना होगा और तेजी से अपने उत्सर्जन में कटौती करनी होगी।
IPCC के अध्यक्ष होसुंग ली ने
कहा कि हम एक चौराहे पर हैं। हम अभी जो फैसला लेते हैं, वो एक जीवंत भविष्य को सुरक्षित कर सकता है। उन्होंने कहा कि हमारे पास वॉर्मिंग को सीमित करने के लिए जरूरी टूल्स और जानकारी है।
IPCC की फाइंडिंग्स पर संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा कि अगर दुनिया के देश अपनी ऊर्जा नीतियों पर पुनर्विचार नहीं करेंगे, तो वह निर्जन हो जाएगी। उन्होंने कहा कि यह कल्पना या अतिशयोक्ति नहीं है। यह वही है जो विज्ञान हमें बताता है। यह सब हमारी मौजूदा ऊर्जा नीतियों का परिणाम होगा। उन्होंने कहा कि हम 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा से भी दोगुना अधिक ग्लोबल वार्मिंग के रास्ते पर हैं।
क्लाइमेट चेंज 2022 : मिटिगेशन ऑफ क्लाइमेट चेंज नाम की यह रिपोर्ट कुछ दिनों पहले जारी की गई है। इसमें कहा गया है कि ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने के लिए ऊर्जा क्षेत्र में बदलाव की जरूरत होगी। इसके लिए जीवाश्म ईंधन का उपयोग कम करना होगा। विद्युतीकरण तेज करना होगा और हाइड्रोजन जैसे ईंधन के विकल्पों को इस्तेमाल करना होगा।
रिपोर्ट में पिछले कुछ वर्षों में हुई अच्छी कोशिशों के बारे में भी बताया गया है। कहा गया है कि 2010-19 के बीच सालाना ग्रीनहाउस उत्सर्जन इतिहास में सबसे अधिक था, लेकिन इसकी ग्रोथ कम हुई है। इसके अलावा, सौर और पवन ऊर्जा व बैटरी की लागत में साल 2010 के मुकाबले 85 प्रतिशत तक कमी आई है। रिपोर्ट कहती है कि हमारी लाइफस्टाइल और व्यवहार में बदलाव और सही पॉलिसी से साल 2050 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 40 से 70 प्रतिशत की कमी लाई जा सकती है।