अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) एक बार फिर इंसान को चंद्रमा पर भेजने का मिशन बना रही है। यह जानकारी हम आपको पहले भी दे चुके हैं। ताजा अपडेट यह है कि मिशन के लिए नासा अपने स्पेस लॉन्च सिस्टम (SLS) रॉकेट को रोलआउट करने जा रही है। इसके जरिए इंसान को चंद्रमा, मंगल ग्रह और उससे भी आगे तक ले जाने की योजना है। यह सिस्टम पिछले एक दशक से तैयार हो रहा है, जिसमें देरी की वजह से इसकी लागत बढ़ी है। हालांकि नासा को उम्मीद है कि एक बार इसे सफलतापूर्वक लॉन्च करने के बाद यह अपने डेवलपमेंट में हुई देरी को कवर कर लेगा। स्पेस लॉन्च सिस्टम (SLS) के दो हिस्से होते हैं। पहला- सुपर-हैवी रॉकेट और दूसरा- ओरियन स्पेसक्राफ्ट। इन दोनों हिस्सों को अमेरिका के फ्लोरिडा स्थित कैनेडी स्पेस सेंटर में ‘वेट ड्रेस रिहर्सल' के लिए लॉन्चपैड पर रोलआउट किया जाएगा। रोलआउट में करीब 11 घंटे लगने की संभावना है।
इस पूरे प्रोसेस में नासा सबसे पहले SLS को रोलआउट करेगी। फिर अपनी तैयारी को साबित करने के लिए वह कई और टेस्ट करेगी। सबसे आखिर में प्री-लॉन्च टेस्ट होगा, जिसे ‘वेट ड्रेस रिहर्सल' कहा जाता है। इस दौरान सिस्टम को इसके प्रोपलैंट टैंकों से लोड किया जाएगा। TechCrunch की एक
रिपोर्ट के अनुसार, आर्टेमिस लॉन्च के डायरेक्टर चार्ली ब्लैकवेल-थॉम्पसन ने कहा है कि गुरुवार को होने वाला रोलआउट बिना किसी रोक-टोक के आगे बढ़ता है, तो ‘वेट ड्रेस रिहर्सल' 3 अप्रैल को हो सकती है।
SLS पर काम साल 2010 में शुरू हुआ था, लेकिन टेक्निकल इशू के चलते इस प्रोजेक्ट में परेशानियां आईं। नासा का ‘आर्टेमिस I' मिशन पिछले साल नवंबर में उड़ान भरने वाला था। लॉन्च से ठीक एक महीने पहले नासा ने कहा कि उसने टाइमलाइन को आगे बढ़ा दिया और मिशन को फरवरी के मध्य तक लॉन्च किया जाएगा। खास बात यह है कि मिशन फरवरी में भी लॉन्च नहीं हो पाया और इस तारीख को फिर से आगे बढ़ा दिया गया है।
प्रोजेक्ट में देरी की वजह से इसकी लागत भी बढ़ रही है। इस महीने की शुरुआत में नासा के एक ऑडिटर ने बताया कि पहले चार आर्टेमिस मिशनों के लिए ऑपरेशनल खर्च $4.1 बिलियन डॉलर (लगभग 31,336 करोड़ रुपये) होगा और सिंगल SLS के निर्माण में 2.2 बिलियन डॉलर (लगभग 16,813 करोड़ रुपये) का खर्च आएगा।
इसके मुकाबले, अरबपति एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स (SpaceX) एक सुपर-हैवी रॉकेट का निर्माण कर रही है। खास यह है कि इस रॉकेट को दोबारा भी इस्तेमाल किया जा सकेगा। इस रॉकेट की मदद से अगले कुछ साल में वह प्रति लॉन्च 10 मिलियन डॉलर (लगभग 76 करोड़ रुपये) बचाएगी।