क्या आप जानते हैं हमारे सौरमंडल के सबसे छोटे मेंबर कौन हैं? उल्कापिंडों (Meteoroids) का नाम तो सुना ही होगा। ये हमारे सौरमंडल के सबसे छोटे मेंबर हैं। हमने कई खबरों में आपको आकाश में होने वाली उल्कापिंडों की ‘बरसात' के बारे में बताया है। यह एक तरह की चट्टानें हैं, जो पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते ही जलने लगती हैं। इससे आसमान में रोशनी पैदा होती है। उसे ही उल्का (meteor) कहा जाता है। कई उल्कापिंड अपनी यात्रा के दौरान पूरे नहीं जल पाते और उनके अवशेष पृथ्वी तक पहुंच जाते हैं। पर क्या आप जानते हैं कि हर साल कितने उल्कापिंड पृथ्वी की सतह से टकराते हैं?
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रिपोर्ट के अनुसार, वैज्ञानिकों का अनुमान है कि लगभग 10 हजार उल्कापिंड हर साल पृथ्वी से टकराते हैं। पर, ऐसा बहुत कम होता है कि अंतरिक्ष से कोई विशाल चीज पृथ्वी की सतह से टकराती हो। आमतौर पर पृथ्वी पर गिरने वाली चट्टानें बहुत छोटी होती हैं और उनमें से कुछ पृथ्वी तक पहुंच पाती हैं। इनसे पृथ्वी पर मौजूद जीवों को कोई खतरा नहीं होता। हालांकि पृथ्वी पर हर साल जितने उल्कापिंडा टकराते हैं, वह चंद्रमा के मुकाबले बाल्टी में पानी की एक बूंद के बराबर है। चंद्रमा पर हर साल कई तरह की चट्टानें आकर टकराती हैं। इनका साइज 11 से 1100 टन तक होता है।
उरुग्वे की मोंटेवीडियो यूनिवर्सिटी में खगोलशास्त्री गोंजालो टैनक्रेडी ने कहा कि ‘पृथ्वी पर ज्यादातर उल्कापिंड' धूमकेतु से रिलीज की गई धूल से जुड़ी उल्का वर्षा (meteor showers) से आते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह अनुमान लगाने के लिए कि हर साल कितने उल्कापिंड सफलतापूर्वक पृथ्वी से टकराते हैं, टैनक्रेडी ने मौसम विज्ञान सोसायटी के आंकड़ों का विश्लेषण किया।
हालांकि यह जानना असंभव है कि हर साल कितने उल्कापिंड समुद्र में गिरते हैं। टैनक्रेडी ने बताया कि लगभग 33 फीट (10 मीटर) चौड़ी अंतरिक्ष चट्टानों के हर 6 से 10 साल में पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करने की उम्मीद है। रूस में ऐसी ही एक घटना साल 1908 में हुई थी, जिसे तुंगुस्का इवेंट कहा जाता है। ऐसा हर 500 साल में एक बार ही होता है।
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