तुम जियो हजारों साल, यही है आरज़ू। आरज़ू जो भी हो, लेकिन इंसान 100 साल ही जी जाए, तो बड़ी बात होती है। कई परिवारों में ऐसी मौत किसी जश्न से कम नहीं होती। वैज्ञानिक भी लंबे वक्त से हैरान होते रहे हैं कि आखिर कुछ लोग 100 साल या उससे भी ज्यादा कैसे जीते हैं। लगता है उन्हें इस सवाल का जवाब मिल गया है। कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक स्टडी के बाद जो पाया है, उससे पता चलता है कि वायरस-बैक्टीरिया मेहरबान हों, तो 100 साल जीना कोई बड़ी बात नहीं!
यूनिवर्सिटी की ओर से
शेयर की गई जानकारी के अनुसार, उसके
वैज्ञानिकों ने 176 स्वस्थ जापानियों को स्टडी किया। सभी 100 साल की आयु पूरी कर चुके थे। वैज्ञानिकों ने अपनी स्टडी में पाया कि सभी शतायु जापानियों के गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल (जीआई) ट्रैक्ट में बैक्टीरिया और वायरस का खास मिश्रण था।
स्टडी से पता चला है कि आंतों (intestines) में विशिष्ट वायरस की मौजूदगी हमारे स्वास्थ्य को फायदा पहुंचा सकती है। स्टडी के लेखक जोआचिम जोहान्सन ने कहा कि हम हमेशा यह जानने के लिए उत्सुक थे कि कुछ लोग इतना लंबा जीवन क्यों जीते हैं। पिछले शोधों से पता चला है कि पुराने जापानी लोगों की आंतों में मौजूद बैक्टीरिया नए अणु (molecules) पैदा करते हैं, इससे उन्हें रोगजनक (pathogen) से सुरक्षा मिलती है। रोगजनक उन्हें कहा जाता है, जिनके कारण कई तरह की बीमारियों का जन्म होता है। इसमें विषाणु, जीवाणु, कवक, परजीवी आदि आते हैं। इंसानों में जीवों के कारण होने वाले रोग को भी रोगजनक रोगों के रूप में जाना जाता है।
जोआचिम जोहान्सन के मुताबिक, आंतों को संक्रमण से बचा पाने से ही जापानी बुजुर्ग दूसरों की तुलना में लंबे समय तक जीते होते होंगे। इस स्टडी के दौरान वैज्ञानिकों ने 100 वर्ष पूरे कर चुके जापानियों की आंतों के बैक्टीरिया और बैक्टीरिया वायरस को मैप करने के लिए एक एल्गोरिदम डेवलप की। इसकी तुलना 18 से 60 वर्ष के लोगों के ग्रुप से की गई।
वैज्ञानिकों को जापानी बुजुर्गों में बैक्टीरिया और बैक्टीरिया वायरस की बेहतरीन बायलॉजिकल विविधता मिली। वैज्ञानिकों का मानना है कि आंतों में विशेष बैक्टीरिया और वायरस की मौजूदगी उम्र बढ़ने के दौरान होने वाली बीमारियों से सुरक्षा देती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस स्टडी का इस्तेमाल दुनिया के बाकी लोगों की जीवन प्रत्याशा (life expectancy) को बढ़ाने के लिए किया जा सकता है।