वैज्ञानिकों ने निचले समताप मंडल (lower stratosphere) में एक बड़े और ऑल सीजन ट्रॉपिकल ओजोन होल (ozone hole) का पता लगाया है। इसे आकार में काफी बड़ा बताया जा रहा है। यह अंटार्कटिक होल की गहराई के जितना है, लेकिन एरिया में उससे भी 7 गुना अधिक है। कनाडा के ओंटारियो में वाटरलू यूनिवर्सिटी के एक साइंटिस्ट किंग-बिन लू ने इस ऑल सीजन ओजोन होल का खुलासा किया है। इसे ओजोन नुकसान क्षेत्र के रूप में परिभाषित किया गया है। इस ट्रॉपिकल (उष्णकटिबंधीय) ओजोन होल का होना दुनियाभर में चिंता की वजह बन सकता है। इसकी वजह बताते हुए किंग-बिन लू ने कहा कि उष्णकटिबंधीय क्षेत्र हमारे ग्रह के सर्फेस एरिया क्षेत्र आधा हिस्सा है और दुनिया की लगभग आधी आबादी का घर है।
1970 के दशक में कई रिसर्च में यह बात सामने आई थी कि सूर्य से निकलने वाली ज्यादातर पराबैंगनी रेडिएशन को अवशोषित करने वाली ओजोन लेयर, इंडस्ट्रियल केमिकल जैसे, क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC) के कारण खत्म हो सकती है। 1985 में अंटार्कटिक ओजोन होल की खोज ने CFC की वजह से ओजोन में कमी आने की पुष्टि की। हालांकि इस तरह के केमिकल्स पर लगे बैन के बाद ओजोन का खत्म होना कम हुआ है, लेकिन सबूत बताते हैं कि अभी भी ओजोन की कमी बनी हुई है।
रिपोर्टों के अनुसार, ओजोन होल के खतरे बताते हुए किंग-बिन लू ने कहा कि ओजोन लेयर की कमी से जमीनी स्तर पर UV रेडिएशन बढ़ सकता है, जो मनुष्यों में स्किन कैंसर और मोतियाबिंद के खतरे को बढ़ा सकता है साथ ही इंसान के इम्यून सिस्टम को कमजोर कर सकता है और कृषि उत्पादकता में कमी कर सकता है। यह संवेदनशील जलीय जीवों और पारिस्थितिक तंत्र को प्रभावित कर सकता है।
ओजोन होल को लेकर साइंटिस्ट लू के ऑब्जर्वेशन ने वैज्ञानिक कम्युनिटी को हैरान किया है, क्योंकि पारंपरिक फोटोकैमिकल मॉडल द्वारा इसकी भविष्यवाणी नहीं की गई थी। रिपोर्टों से पता चलता है कि भूमध्यरेखीय क्षेत्रों (equatorial regions) में ओजोन की कमी का स्तर पहले से ही बड़ी आबादी को खतरे में डाल रहा है और इन क्षेत्रों तक पहुंचने वाला UV रेडिएशन उम्मीद से कहीं ज्यादा है। साइंटिस्ट लू का कहना है कि दुनियाभर में जलवायु परिवर्तन को बेहतर ढंग से समझने के लिए यह खोज महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।
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