हमारी आकाशगंगा यानी मिल्की-वे के लगभग 13.6 अरब वर्ष के इतिहास में अरबों तारे बने, डेवलप हुए और आखिरकार एक शानदार सुपरनोवा विस्फोट में मर गए। सवाल उठता है कि उन सबकी ‘लाशें' कहां छुपी हैं? रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी के मंथली नोटिस में 25 अगस्त को पब्लिश नए शोध में खगोलविदों ने इसी के बारे में बताने की कोशिश की है। रिसर्चर्स की टीम ने कंप्यूटर सिमुलेशन का उपयोग करते हुए हमारी आकाशगंगा के शुरुआती समय में मौजूद लाखों तारों की अनुमानित पोजिशन का एक मैप तैयार किया। यह जानने के लिए कि उन लाखों तारों के अवशेष सुपरनोवा विस्फोट के बाद कहां गए हो सकते हैं, वैज्ञानिकों ने कॉस्मिक फास्ट-फॉरवर्ड बटन का इस्तेमाल किया।
इसके परिणामस्वरूप जो मैप उभरकर आया, उसमें ब्लैक होल और न्यूट्रॉन तारों के ‘गैलेक्टिक अंडरवर्ल्ड' का पता चला, जो मिल्की-वे के हर कोने में और उससे भी बहुत आगे तक मौजूद है। इसके अलावा, हमारी आकाशगंगा के एक तिहाई मृत तारों ने उनमें हुए विस्फोटों के फोर्स से खुद को अंतरिक्ष की गहराइयों में ‘बंद' कर लिया है।
लाइव साइंस की
रिपोर्ट के अनुसार, सिडनी यूनिवर्सिटी में डॉक्टरेट कैंडिडेट और स्टडी के लीड लेखक डेविड स्वीनी ने कहा कि सुपरनोवा विस्फोट असंयमित (asymmetric) होते हैं। सुपरनोवा विस्फोट के बाद तारों के अवशेष लाखों किलोमीटर प्रति घंटे की हाई स्पीड से बाहर निकलते हैं। इसने हमारी आकाशगंगा से 30 फीसदी ऑब्जेक्ट्स को पूरी तरह से बाहर निकाल दिया है।
अपने शोध में रिसर्चर्स की टीम ने दो प्रकार के तारकीय अवशेषों पर फोकस किया। पहला- न्यूट्रॉन तारे और दूसरा- ब्लैक होल। ये दोनों ही तब बनते हैं, जब किसी बड़े तारे में विस्फोट के बाद उसका फ्यूल बाहर निकलता है। अगर मरने वाले तारे का द्रव्यमान हमारे सूर्य से कम से कम आठ गुना हो, तो एक न्यूट्रॉन तारे का जन्म होता है। अगर मरने वाले तारे का द्रव्यमान हमारे सूर्य से 25 गुना ज्यादा हुआ, तो एक ब्लैक होल निकलता है।
खगोलविदों ने हमारे ब्रह्मांड में तारों के दोनों तरह के अवशेषों का पता लगाया है हालांकि यह अबतक मर चकुे अरबों तारे के हिसाब से बहुत कम है। इन अवशेषों तक पहुंच पाना मुश्किल है, क्योंकि पिछले 13 अरब साल में हमारी आकाशगंगा के आकार में काफी बदलाव हुआ है। हालांकि टीम यह आकलन कर पाई है कि तारों के अवशेष बहुत ज्यादा दूर नहीं होने चाहिए। सबसे नजदीकी अवशेष सूर्य से 65 प्रकाश-वर्ष दूर हो सकता है। यह रिसर्च भविष्य में तारों के अवशेषों को देख पाने में कारगर हो सकती है।