AI से नौकरी जाने का डर अब पुराना हो चुका है। अब बात हो रही है इंसानों के ही धीरे-धीरे गायब हो जाने की। ओक्लाहोमा स्टेट यूनिवर्सिटी के कंप्यूटर साइंस प्रोफेसर सुभाष काक का कहना है कि अगर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का ग्रोथ इसी रफ्तार से चलता रहा, तो साल 2300 तक दुनिया की आबादी घटकर सिर्फ 10 करोड़ रह सकती है, यानी आज के यूनाइटेड किंगडम के बराबर। उन्होंने यह भी बताया कि अगर यह ट्रेंड कंटीन्यू रहा, तो आने वाले समय में दुनिया के बड़े-बड़े शहर वीरान हो सकते हैं।
काक ने न्यूयॉर्क पोस्ट से
बात करते हुए इसे "Devastating" बताया, यानी 'भयानक', और कहा कि "लोगों को इसका अंदाजा भी नहीं है कि AI कितना गहरा असर डालने जा रहा है।" रिपोर्ट के मुताबिक, काक का मानना है कि AI के आने से जैसे-जैसे
कामकाज ऑटोमेट हो जाएंगे, इंसानों की जरूरत घटेगी, नौकरियां कम होंगी और लोग फैमिली प्लानिंग से पीछे हटेंगे।
उन्होंने अपने बयान में कहा (अनुवादित) "AI खुद कभी सचेत नहीं होगा, लेकिन इंसानों जैसा सबकुछ करेगा और जब वो हमारी जगह काम करने लगेगा, तो इंसानों के होने की जरूरत ही कितनी रह जाएगी?" उनका यह भी कहना है कि दुनिया के कई हिस्सों में जनसंख्या पहले से गिर रही है, खासतौर पर जापान, चीन, यूरोप और साउथ कोरिया में।
काक ने यह भी कहा कि अगर यह ट्रेंड कंटीन्यू रहा, तो आने वाले समय में दुनिया के बड़े-बड़े शहर वीरान हो सकते हैं। उन्होंने कहा (अनुवादित), "अगर आबादी 10 करोड़ रह जाती है, तो लंदन और न्यूयॉर्क जैसे शहर खाली पड़े होंगे, सिर्फ मेटल और मशीनों से भरे हुए।" उन्होंने एलन मस्क का भी हवाला दिया जो पहले ही कह चुके हैं कि बर्थ रेट गिरना मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा है और इसी वजह से मस्क
स्पेस कॉलोनीज की बात करते हैं ताकि इंसानी सभ्यता को बचाया जा सके।
काक की बातों का मतलब सीधा है कि AI का असर सिर्फ काम तक नहीं, समाज, परिवार और इंसान के अस्तित्व तक पहुंचने वाला है। वो कहते हैं कि बदलाव शुरू हो चुका है, बस हम उसे नोटिस नहीं कर रहे। "लोग बच्चों को जन्म देना बंद कर चुके हैं और AI के आगे बढ़ते ही ये रफ्तार और तेज होगी।"