कड़े नियमों वाले देश के तौर पर पहचान रखने वाले तुर्की ने एक नया कानून बनाया है जिसके तहत पत्रकारों और सोशल मीडिया यूजर्स को 'फेक न्यूज' फैलाने पर तीन वर्ष तक की जेल हो सकती है। तुर्की में अगले वर्ष चुनाव होने हैं और इससे पहले इस नए कानून से सरकार की मीडिया पर पकड़ मजबूत हो जाएगी।
तुर्की की पार्लियामेंट में इस कानून के पारित होने का कुछ सांसदों ने
विरोध भी किया। CHP पार्टी के सांसद Burak Erbay ने अपने मोबाइल फोन को एक हथौड़े से तोड़ कर अपनी नाराजगी दिखाई। उन्होंने कहा, "मैं अपने युवा भाइयों को संदेश देना चाहता हूं जो अगले वर्ष तुर्की की दिशा तय करेंगे। आपके पास केवल एक स्वतंत्रता बची है जो आपकी जेब में आपका फोन है। आप फेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर अपनी बात कहें।"
तुर्की के अधिकतर समाचार पत्र और टेलीविजन चैनल सरकारी अधिकारियों और उनके कारोबारी सहयोगियों के नियंत्रण में हैं। लगभग छह वर्ष पहले एक तख्तापलट की एक नाकाम कोशिश के बाद सरकार ने मीडिया पर अपना नियंत्रण बढ़ा दिया था।
हालांकि, सोशल नेटवर्क्स और इंटरनेट-बेस्ड मीडिया पर सरकार का ज्यादा दखल नहीं है। तुर्की के प्रेसिडेंट Tayyip Erdogan सोशल मीडिया पर सरकार की निंदा से नाराज हैं। इस स्थिति में भी पिछले कुछ महीनों से बदलाव हो रहा है। तुर्की ने Facebook और Twitter को विवादास्पद पोस्ट्स हटाने के स्थानीय अदालत के आदेश का जल्द पालन करने के लिए स्थानीय प्रतिनिधि नियुक्त करने के लिए मजबूत किया है। इन कंपनियों को ऐसा न करने पर भारी जुर्माना लगाने की चेतावनी दी गई थी। सोशल मीडिया के बारे में Erdogan ने कहा था कि तुर्की का अधिक ध्रुवीकरण वाले समाज को जाली और भ्रम फैलाने वाली न्यूज से नुकसान हो सकता है। उनका कहना था कि लोकतंत्र के लिए सोशल मीडिया एक बड़ा खतरा बन गया है।
नए कानून के तहत गलत या भ्रामक जानकारी फैलाने के दोषियों पर आपराधिक जुर्माना लगाया जाएगा। इसमें सोशल नेटवर्क्स और वेबसाइट्स को भ्रामक जानकारी फैलाने के संदिग्ध लोगों की डिटेल्स देनी होंगी। बड़ी मुस्लिम जनसंख्या वाले तुर्की का पड़ोसी देश सायप्रस के साथ भी विवाद चल रहा है। इस विवाद से जुड़ी जानकारी को भी सरकार रोकने की कोशिश करती है।