देश के विभिन्न राज्यों में एकतरफा तरीके से इंटरनेट को बंद किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने मिनिस्ट्री ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (MeitY) से जवाब देने को कहा है। इस बारे में दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने मिनिस्ट्री से इसका कारण पूछा है। लगभग दो वर्ष पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा था कि इंटरनेट सर्विसेज को बिना स्पष्ट कारण बताए बंद करना गैर कानूनी है।
कुछ राज्य सरकारें ऐसे क्षेत्रों में नियमित तौर पर इंटरनेट को बंद कर देती हैं जहां परीक्षाएं हो रही हैं। इसका कारण परीक्षाओं में धोखाधड़ी को रोकना होता है। चीफ जस्टिस यू यू ललित, जस्टिस एस रवीन्द्र भट्ट और पी एस नरसिम्हा की बेंच ने सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर की ओर से दायर जनहित याचिका पर
मिनिस्ट्री से जवाब देने को कहा है। याचिका में
आरोप लगाया है कि अरुणाचल प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में इंटरनेट सर्विसेज को बंद किया जाता है। कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि क्या इस समस्या से निपटने के लिए कोई प्रोटोकॉल मौजूद है। कोर्ट का कहना है कि वह इस मामले में इंटरनेट सर्विसेज बंद करने वाले राज्यों के बजाय मिनिस्ट्री को नोटिस जारी कर रहा है।
परीक्षाओं में धोखाधड़ी को रोकने के लिए कुछ राज्यों में इंटरनेट को बंद किया जाता है। एडवोकेट वृंदा ग्रोवर ने कोर्ट को बताया कि इसे लेकर राजस्थान और पश्चिम बंगाल के हाई कोर्ट में याचिकाएं दाखिल की गई थी। सुप्रीम कोर्ट में दायर जनहित याचिका राजस्थान में हाल ही में सामुदायिक तनाव और विभिन्न राज्यों में प्रतियोगी परीक्षाओं के दौरान इंटरनेट को बंद करने की जानकारी दी गई है।
याचिका में पूछा गया है कि क्या इन कारणों के लिए इंटरनेट को बंद किया जा सकता है। इसके साथ ही यह बताया गया है कि संसद की एक समिति ने धोखाधड़ी को रोकने के लिए इस तरह के उपाय नहीं करने का सुझाव दिया था। बेंच ने कहा कि अदालतों को अनुराधा भसीन के मामले में तय उदाहरण का पालन करने के लिए कहा जा सकता है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ऑर्डर दिया था कि इंटरनेट को बंद करने के लिए जरूरत और अनुपात के नियम पूरे किए जाने चाहिए। इंटरनेट सर्विसेज को स्पष्ट कारण की जानकारी दिए बिना बंद करना गैर कानूनी है।