जन्‍म से पहले गर्भ में लात क्‍यों मारते हैं बच्‍चे? वैज्ञानिकों ने लगाया पता, आप भी जानें

बच्‍चे अपने जन्‍म के बाद से ही और गर्भ में रहते हुए लात मारना, हिलना-डुलना शुरू कर देते हैं। उनकी एक किक में 10 पाउंड से ज्‍यादा फोर्स हो सकता है।

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Written by प्रेम त्रिपाठी, Edited by आकाश आनंद, अपडेटेड: 8 जनवरी 2023 14:19 IST
ख़ास बातें
  • टोक्‍याे यूनिव‍र्सिटी के वैज्ञानिकों की रिसर्च
  • कहा, बच्‍चों के विकास में मिलती है मदद
  • 10 दिन से कम उम्र के बच्‍चों को परखा गया

वैज्ञानिकों ने नवजात शिशुओं के डिटेल मोशन कैप्चर को मस्कुलोस्केलेटल कंप्यूटर मॉडल के साथ जोड़ा। इससे उन्‍हें बच्‍चों की मांसपेशियों और संवेदनाओं के बीच हो रहे कम्‍युनिकेशन को समझने में मदद मिली।

गर्भावस्‍था (pregnancy) किसी भी महिला के लिए जीवन का अहम पड़ाव होता है। 9 महीनों के दौरान महिलाओं को शारीरिक और मानसिक परिवर्तनों से गुजरना पड़ता है। नए मेहमान यानी गर्भस्‍थ शिशु के दुनिया में आगमन से पहले ही मां को अपने बच्‍चे का एहसास होने लगता है। कभी मूवमेंट के जरिए तो कभी बच्‍चे के गर्भ में लात मारने से मां अपने बच्‍चे के साथ भावनात्‍मक रूप से जुड़ती चली जाती है। लेकिन एक सवाल लंबे समय से वैज्ञानिकों के जेहन में था कि बच्चे गर्भ में लात क्यों मारते हैं? ऐसा लगता है कि यह रहस्‍य सुलझा लिया गया है। 

टोक्यो यूनिवर्सिटी की एक टीम का कहना है कि ये हरकतें बच्‍चे के विकास में मदद करती हैं। ऐसा करके बच्‍चों के सेंसरिमोटर सिस्टम (sensorimotor system) के विकास में मदद मिलती है यानी वो गर्भ में पलते हुए फ‍िजिकल एक्टिविटी के जरिए दुनिया को समझने की कोशिश करते हैं। उदाहरण के लिए किसी व्‍यक्‍त‍ि के हाथ और आंख के बीच कोऑर्डिनेशन।   

रिपोर्टों के अनुसार, बच्‍चे अपने जन्‍म के बाद से ही और गर्भ में रहते हुए लात मारना, हिलना-डुलना शुरू कर देते हैं। उनकी एक किक में 10 पाउंड से ज्‍यादा फोर्स हो सकता है। यही बात वैज्ञानिकों को वर्षों से हैरान करती आई है। जापानी वैज्ञानिकों ने अपने मॉडल के जरिए बताया है कि ऐसा करके बच्‍चों को अपने शरीर को नियंत्र‍ित रखने में मदद मिलती है। 

वैज्ञानिकों ने नवजात शिशुओं के डिटेल मोशन कैप्चर को मस्कुलोस्केलेटल कंप्यूटर मॉडल के साथ जोड़ा। इससे उन्‍हें बच्‍चों की मांसपेशियों और संवेदनाओं के बीच हो रहे कम्‍युनिकेशन को समझने में मदद मिली। वैज्ञानिकों का मानना है कि उनकी रिसर्च से भविष्‍य में न्यूरोडीजेनेरेटिव डिसऑर्डर्स के इलाज में भी मदद मिल सकती है। इन डिसऑर्डर्स में मल्टीपल स्केलेरोसिस, मोटर न्यूरॉन रोग और सेरेब्रल पाल्सी शामिल हैं।

वैज्ञानिक अभी सेंसरिमोटर सिस्टम को और समझना चाहते हैं। टोक्‍यो यून‍िवर्सिटी के ग्रेजुएट स्कूल ऑफ इंफॉर्मेशन साइंस एंड टेक्नोलॉजी के प्रोजेक्ट असिस्टेंट प्रोफेसर होशिनोरी कनाजावा ने कहा कि सेंसरिमोटर डेवलपमेंट को लेकर हुई पिछली स्‍टडीज में मांसपेशियों की गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित किया है। हमारी स्‍टडी पूरे शरीर के लिए मांसपेशियों की गतिविधि और सेंसरी इनपुट सिग्‍नलों पर फोकस्‍ड थी। हमने पाया कि गर्भ में पल रहे बच्‍चों के लिए ऐसे टास्‍क जिसका कोई मकसद नहीं है जैसे-गर्भ में लात मारना, वह बच्‍चे के विकास में योगदान देते हैं। 
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वैज्ञानिकों ने इस नतीजे तक पहुंचने के लिए 10 दिन से कम उम्र के 12 हेल्‍दी नवजात शिशुओं और 3 महीने की उम्र के 10 शिशुओं को स्‍टडी किया। इस दौरान उनके मूवमेंट को रिकॉर्ड किया गया। प्रोफेसर होशिनोरी कानाजावा ने कहा कि बच्‍चों ने उस तरह के मूवमेंट किए, जो उनके विकास को बढ़ाएं। वैज्ञानिकों ने इस घटना को ‘सेंसोरिमोटर वांडरिंग' नाम दिया। 

वैज्ञानिकों ने अपनी स्‍टडी में कहा है कि नवजात शिशु और शिशु बिना किसी मकसद के अपने हाथ-पैर चलाते हैं और शरीर के साथ कोऑर्डिनेशन बनाते हैं। होशिनोरी कनाजावा ने कहा कि उनकी स्‍टडी का अहम मकसद शुरुआती मोटर डेवलपमेंट के मौजूद मैकनिज्‍म को समझना है, जो बच्‍चों के विकास में मदद करता है। गौरतलब है कि ज्‍यादातर महिलाओं को 16 से 24 सप्ताह के बीच गर्भ में हलचल महसूस होने लगती है। वैज्ञानिकों की यह स्‍टडी प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (Proceedings of the National Academy of Sciences) में पब्लिश हुई है। 
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