वैज्ञानिकों ने नई स्टडी से पता लगाया चांद पर कहां से आया होगा पानी!

शोधकर्ताओं ने इस स्टडी को इस हाइपोथिसिस पर तैयार किया है कि ज्वालामुखीय गतिविधि से बने पानी के सारे वाष्प कण सौर हवाओं के कारण खत्म नहीं हुए होंगे।

वैज्ञानिकों ने नई स्टडी से पता लगाया चांद पर कहां से आया होगा पानी!

वैज्ञानिकों ने कहा कि चांद की सतह पर हुई होंगी ज्वालामुखीय घटनाएं

ख़ास बातें
  • ज्वालामुखी फटने की घटनाएं 1 अरब साल पहले तक चांद पर रही होंगीं
  • सतह पर दिखने वाले बड़े धब्बे ज्वालामुखीय मैदान हैं- वैज्ञानिक
  • पोल्स पर बर्फ के रूप में जमा हुआ होगा पानी
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पृथ्वी के बाहर जीवन तलाशने के लिए इन्सान हमेशा से ही उत्सुक रहा है। जब से नासा ने चांद पर पानी के होने की पुष्टि की है, कई शोध इसको लेकर हो चुके हैं कि चांद पर पानी का स्रोत क्या हो सकता है। अब एक नई शोध ने बहुत ही अजब नतीजा पेश किया है। इसने कहा है कि चांद पर पानी का स्रोत होने का कारण ज्वालामुखी हो सकते हैं। हम जानते हैं कि चांद पर पुराने समय में कई ज्वालामुखी फूट चुके हैं। 

चांद पर ज्वालामुखीय गतिविधियां 4.2 खरब साल पहले शुरू हुई होंगी। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि ज्वालामुखी फटने की घटनाएं 1 अरब साल पहले तक चांद पर रही होंगीं। इसकी सतह पर दिखने वाले बड़े बड़े धब्बे ज्वालामुखीय चट्टानों के ही मैदान हैं जो बड़े ज्वालामुखी विस्फोटों के कारण बने हैं। वैज्ञानिक ये समझने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या इन विस्फोटों से गैसें निकली होंगी, जो इसके वातावरण में कैद हुई होंगीं? और क्या ये गैसें ठंडी होकर बर्फ के रूप में दोबारा से मंगल की सतह पर गिरी होंगी, जहां पर सूर्य की रोशनी नहीं पहुंच पाती है। 

वैज्ञानिकों ने कहा है कि यह एक संभावना हो सकती है। "हमारा मॉडल यह अनुमान लगाता है कि कुल H20 मास का 41 प्रतिशत दोबारा से सघन होकर इसके पोल्स पर बर्फ के रूप में जमा हुआ होगा। इसकी मोटाई सैकडों मीटर की रही होगी।" प्लेनेटरी साइंस जनरल में वैज्ञानिकों ने इस स्टडी को पब्लिश किया है। 

वैज्ञानिकों ने कहा है कि चांद पर ज्वालामुखीय घटनाओं का काल बहुत छोटा रहा होगा। य़हां पर हर एल्टीट्यूड पर बर्फ रूपी पानी मौजूद रहा होगा जो पोल्स पर बनी होगी। 

शोधकर्ताओं ने इस स्टडी को इस हाइपोथिसिस पर तैयार किया है कि ज्वालामुखीय गतिविधि से बने पानी के सारे वाष्प कण सौर हवाओं के कारण खत्म नहीं हुए होंगे। उनमें से कुछ पाले के रूप में सतह पर जम गए होंगे। और इस तरह चांद पर पानी उपलब्ध हुआ होगा। 
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