Surya Tilak : अयोध्या में रामनवमी के दिन बुधवार को दोपहर 12 बजे रामलला के माथे पर पड़ी सूर्य की किरणों ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा। भगवान राम के सूर्य अभिषेक पर काम कई साल से चल रहा था। वैज्ञानिकों ने इस पर काफी रिसर्च की और कुछ दिन पहले ट्रायल भी किया था, जोकि सफल रहा। दुनियाभर के लोग इस पल को देखने के लिए टीवी और ऑनलाइन पोर्टल्स पर मौजूद थे। आस्था का यह पल सच हुआ वैज्ञानिकों की कोशिश से। आखिर कैसे रामलला के माथे पर पड़ीं सूर्य की किरणें? जानते हैं इसके पीछे का साइंस।
‘सीबीआरआई' रूड़की ने किया ‘कमाल'
भगवान राम का जन्म रामनवमी के दिन दोपहर 12 बजे हुआ था। ‘सूर्य तिलक' का मकसद है कि हर साल रामनवमी पर दोपहर 12 बजे सूर्य की किरणें भगवान राम की प्रतिमा के माथे पर पड़ें। इसे मुमकिन बनाने के लिए सूर्य तिलक का मैकनिज्म ‘सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टिट्यूट' (CBRI) के वैज्ञानिकों ने तैयार किया है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, बंगलूरू के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (IIA) ने भी इसमें मदद की, ताकि सूर्य के पथ का सटीक पता रहे।
क्या किया वैज्ञानिकों ने
रामलला के माथे पर सूर्य की किरणें पहुंचाने के लिए वैज्ञानिकों ने 3 दर्पणों का इस्तेमाल किया। पहला दर्पण मंदिर के सबसे टॉप फ्लोर (तीसरे तल) पर लगाया। दोपहर 12 बजे जैसे ही सूर्य की किरणें उस मिरर पर पड़ीं, उन्हें 90 डिग्री में रिफ्लेक्ट करके एक पाइप के जरिए दूसरे मिरर तक पहुंचाया गया। वहां से सूर्य की किरणें फिर से रिफ्लेक्ट हुईं और पीतल के पाइप से होकर तीसरे मिरर तक पहुंच गईं। तीसरे मिरर पर पड़ने के बाद सूर्य किरणें फिर से 90 डिग्री में रिफ्लेक्ट हुईं और स्पीड के साथ 90 डिग्री पर घूमते हुए सीधे रामलला के माथे पर पड़ीं।
75mm आकार, 4 मिनट तक रोशनी
सूर्य किरणें जब पाइप से गुजरते हुए रामलला के माथे पर पड़ीं तो 75एमएम का सुर्कलर बनाया। कुल मिनटों तक सूर्य किरणें रामलला के मस्तक पर पड़ीं। यह पूरा प्रयोग बिना बिजली के किया गया। इसमें इस्तेमाल किए लेंस और ट्यूब को बंगलूरू की कंपनी ऑप्टिका ने तैयार किया है।
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