इस महीने के मध्य में पूरी दुनिया ने चंद्रमा को बेहद खास अंदाज में देखा था। उसे स्ट्रॉबेरी मून (Strawberry Moon) कहा गया था। अब अगले महीने यानी जुलाई में दुनिया ‘बक मून' या ‘थंडर मून' की गवाह बनेगी। इसकी शुरुआत 13 जुलाई को होगी। चंद्रमा उस दिन भी पृथ्वी की कक्षा में अपने निकटतम बिंदु पेरिगी पर पहुंच जाएगा। इसकी वजह से वह आम पूर्णिमा के मुकाबले सामान्य से थोड़ा बड़ा दिखाई देगा। नासा के अनुसार, यह लगातार दिखाई देने वाले चार सुपरमून में से तीसरा होगा।
स्पेसडॉटकॉम की
रिपोर्ट के अनुसार, जब चंद्रमा पृथ्वी की अपनी कक्षा में निकटतम बिंदु पर होता है, तब वह सामान्य से 10 गुना ज्यादा बड़ा दिखाई देता है। इसका मतलब यह भी है कि वह 10 गुना अधिक रोशन दिखाई देगा। इस दौरान पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी करीब 26 हजार किलोमीटर कम हो जाएगी।
गौरतलब है कि जून महीने में दुनिया ने स्ट्रॉबेरी मून का दीदार किया था। भारत समेत दुनियाभर में इसे देखा गया था। स्ट्रॉबेरी मून की तस्वीरों ने सोशल मीडिया पर भी सुर्खियां बटोरी थीं। यह नाम अमेरिका की जनजातियों द्वारा दिया गया है। इस नाम का इस्तेमाल अल्गोंक्विन, ओजिब्वे, डकोटा और लकोटा लोगों द्वारा किया जाता है। कोई भी सुपरमून हो, लेकिन भारत में उसे सामान्यतौर पर पूर्णिमा ही कहा जाता है।
खगोलविज्ञान में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के लिए यह सुनहरा मौका होता है। लोग इस दौरान एक अच्छे टेलीस्कोप का इस्तेमाल करके चंद्रमा की सतह पर क्रेटर और पहाड़ों को देख सकते हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार, पूर्णिमा की रात में चंद्रमा के साथ-साथ चार और आंखों को बिना दूरबीन की मदद से देखा जा सकेगा। लोग शनि, बृहस्पति, शुक्र और मंगल ग्रह को देख पाएंगे। स्ट्रॉबेरी मून की तरह ही जुलाई की पूर्णिमा को बक मून और थंडर मून कहने की भी वजहें हैं। बक मून भी अमेरिकियों द्वारा दिया गया नाम है, क्योंकि इस दौरान हिरनों एक हिरनों के सींग डेवलप हो रहे होते हैं। इसे थंडर मून कहा जाता है क्योंकि इस महीने में अक्सर गरज के साथ बारिश होती है।
वहीं चीन में पूर्णिमा को लोटस मंथ कहा जाता है, क्योंकि वह इस नाम के फूल खिलने शुरू हो जाते हैं। भारत में इसे गुरु पूर्णिमा के तौर पर मानाया जाएगा। इस दिन महर्षि वेद व्यास की जयंती मनाई जाती है।