पृथ्वी की जलवायु में हुए कुछ बड़े बदलावों के बावजूद करोड़ों साल से इस ग्रह पर जीवन पनप रहा है। अब मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) के रिसर्चर्स की एक स्टडी में पता चला है कि पृथ्वी का अपना स्थिर तंत्र (stabilizing mechanism) है। यूं कहें कि हमारे ग्रह के पास एक स्पेशल पावर है, जो ग्लोबल तापमान को स्थिर रखते हुए इसे रहने लायक बनाती है। लेकिन यह मुमकिन कैसे होता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इसका संभावित तंत्र ‘सिलिकेट अपक्षय' (silicate weathering) है। यह एक भूवैज्ञानिक प्रक्रिया है, जो कार्बन डाइऑक्साइड को वायुमंडल से बाहर निकालती है। इससे ग्रह की कार्बन साइकल रेगुलेट होती है।
वैज्ञानिकों का
मानना है कि ‘सिलिकॉन अपक्षय मैकनिज्म' ग्लोबल तापमान और कार्बन डाइऑक्साइड को ऑप्टिमम लेवल पर रखने के लिए जिम्मेदार हो सकता है। हालांकि वैज्ञानिकों के पास अभी भी इस थ्योरी के प्रत्यक्ष सबूतों की कमी है। वैज्ञानिकों के निष्कर्ष जर्नल साइंस एडवांसेज में
प्रकाशित हुए हैं।
स्टडी के लेखक कॉन्सटेंटिन अर्नस्कीडिट ने कहा कि एक ओर तो यह रिसर्च अच्छी है क्योंकि इससे ग्लोबल वॉर्मिंग का मुद्दा नहीं रहेगा, लेकिन पृथ्वी के इस स्थिर तंत्र को होने में सैकड़ों-हजारों साल लगते हैं, जो ग्लोबल वॉर्मिंग के मौजूदा खतरे को हल करने के लिए नाकाफी है।
वैज्ञानिक जिस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं, वह एकदम नया नहीं है। हमारी पृथ्वी के कार्बन चक्र में जलवायु-स्थिरीकरण का प्रभाव होने के बारे में वैज्ञानिक पहले से अनुमान लगाते आए हैं। हमारे ग्रह की चट्टानों के विश्लेषण से इस बारे में जरूरी जानकारी मिली है। प्राचीन चट्टानों का रासायनिक विश्लेषण करने पर वैज्ञानिकों को पता चला कि ग्लोबल तापमान में नाटकीय परिवर्तन के बावजूद ग्रह की सतह के वातावरण में और बाहर, कार्बन का प्रवाह अपेक्षाकृत स्थिर और संतुलित बना हुआ है।
हालांकि वैज्ञानिक जिस स्थिर तंत्र की बात कर रहे हैं, वह हजारों साल चलने वाली एक प्रक्रिया है। मौजूदा समय में हम जिस ग्लोबल वॉर्मिंग का सामना कर रहे हैं, उससे निपटने में पृथ्वी का स्थिर तंत्र नाकाफी दिखता है। अगर यह आज की परिस्थितियों से निपट भी लेगा, तो उसमें हजारों साल का समय लग सकता है। पता नहीं तब तक मौजूदा जीवन इस ग्रह पर बचेगा भी या नहीं। आज जो चुनौती हमारे सामने है, उससे निपटने का प्रयास फौरन और तेजी से करना होगा।