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भारत भरोसे चीन! 41 लाख रुपये की डिवाइस नहीं पहुंची ड्रैगन के देश, स्‍पेस स्‍टेशन में हो रहा इंतजार

SING Instrument : अपनी खीझ जाहिर करते हुए चीनी मीडिया ने लिखा है कि भारतीय वैज्ञानिकों को स्‍पेस स्‍टेशन में इस्‍तेमाल किए जाने वाले एक इंस्‍ट्रुमेंट को चीन भेजने में दिक्‍कत आ रही है।

भारत भरोसे चीन! 41 लाख रुपये की डिवाइस नहीं पहुंची ड्रैगन के देश, स्‍पेस स्‍टेशन में हो रहा इंतजार

Photo Credit: Xinhua

चीन के तियांगोंग स्‍पेस स्‍टेशन के लिए इंडियन इ‍ंस्टिट्यूट ऑफ एस्‍ट्रोफ‍िजिक्‍स की टीम ने नेबुलर गैस (सिंग) डिवाइस तैयार की है।

ख़ास बातें
  • भारतीय वैज्ञानिकों ने की है एक डिवाइस तैयार
  • उस डिवाइस को चीन के स्‍पेस स्‍टेशन में लगाया जाना है
  • डिवाइस को अभी तक भारत से डिलिवर नहीं किया गया है
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आमतौर पर धारणा है कि भारत में जरूरत की ज्‍यादातर चीजें चीन से इम्‍पोर्ट होकर आती हैं। लेकिन इस वक्‍त चीन को भारत में बने एक इंस्‍ट्रुमेंट की जरूरत है। चीन के महत्‍वाकांक्षी तियांगोंग स्‍पेस स्‍टेशन (Tiangong space station) के लिए भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा बनाया गया एक उपकरण अबतक चीन को डिलिवर नहीं किया गया है। अपनी खीझ जाहिर करते हुए चीनी मीडिया ने लिखा है कि भारतीय वैज्ञानिकों को स्‍पेस स्‍टेशन में इस्‍तेमाल किए जाने वाले एक इंस्‍ट्रुमेंट को चीन भेजने में दिक्‍कत आ रही है। 
 

क्‍या है यह उपकरण? 

साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्‍ट की रिपोर्ट के अनुसार, चीन के तियांगोंग स्‍पेस स्‍टेशन के लिए इंडियन इ‍ंस्टिट्यूट ऑफ एस्‍ट्रोफ‍िजिक्‍स की टीम ने नेबुलर गैस (सिंग) डिवाइस तैयार की है। स्‍पेस साइंस की दुनिया में यह भारत और चीन के बीच अपनी तरह का पहला सहयोग था। भारतीय वैज्ञानिकों ने जिस इंस्‍ट्रुमेंट को तैयार किया है, उसकी कॉस्‍ट 50 हजार अमेरिकी डॉलर (लगभग 41 लाख 37 हजार रुपये) बताई जाती है। 
 

क्‍या काम करेगा ‘सिंग' 

SING का पूरा नाम है- स्‍पेक्‍ट्रोग्राफ‍िक इन्‍वेस्टिगेशन ऑफ नेबुलर गैस (Spectrographic Investigation of Nebular Gas)। इस डिवाइस को तियांगोंग स्‍पेस स्‍टेशन पर लगाया जाना है। जब स्‍टेशन पृथ्‍वी की परिक्रमा करेगा, तब SING पराबैंगनी तरंग बैंड में आकाश को स्कैन करेगा और इंटरस्‍टीलर (अंतरतारकीय) गैस की संरचना और बिहेवियर के अलावा किसी तारे के जन्म और मृत्यु को समझने में मदद करेगा।

रिपोर्ट कहती है कि इंडियन इ‍ंस्टिट्यूट ऑफ एस्‍ट्रोफ‍िजिक्‍स की टीम ने करीब एक साल पहले सिंग डिवाइस के लिए विदेश मंत्रालय से निर्यात परमिट मांगा था। तब से इस मामले में कोई प्रगति नहीं हुई है। रिपोर्ट में प्रोजेक्‍ट को लीड कर रहे खगोल भौतिकीविद् जयंत मूर्ति के हवाले से लिखा गया है कि दो महीने डिवाइस से जुड़ा काम पूरा कर लिया गया था। इंस्‍ट्रूमेंट एक साफ कमरे में है और उड़ान भरने के लिए तैयार है। 

रिपोर्ट कहती है कि सिंग अकेला इंस्‍ट्रूमेंट नहीं है। चीन के स्‍पेस स्‍टेशन के लिए जो अन्‍य अंतरराष्‍ट्रीय प्रयोग किए जा रहे हैं, उन्‍हें भी एक्‍सपोर्ट से संब‍ंधित परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अगर सिंग इस साल चीन पहुंच जाता है तो वह चीनी स्‍पेस स्‍टेशन में काम करने वाला पहला इंटरनेशनल पेलोड होगा।
 
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