बेन्नू (Bennu) नाम के एक एस्टरॉयड पर वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं। इसे पृथ्वी के लिए संभावित रूप से खतरनाक की कैटिगरी में रखा गया है। अनुमान है कि यह एस्टरॉयड साल 2178 से 2290 के बीच पृथ्वी को प्रभावित कर सकता है। बेन्नू नाम मिस्र के एक पौराणिक पक्षी बेन्नू के नाम पर रखा गया है। इस एस्टरॉयड पर रिसर्च कर रहे वैज्ञानिकों ने नासा के OSIRIS-REx स्पेसक्राफ्ट से ली गई तस्वीरों का विश्लेषण करने के बाद जाना है कि सूर्य की गर्मी से 10,000 से 100,000 साल में बेन्नू की चट्टानों पर फ्रैक्चर्स होते हैं। यह पृथ्वी की तुलना में बहुत तेज है यानी पृथ्वी के मुकाबले एस्टरॉयड पर सतह का रिजेनरेशन ज्यादा तेज होता है और बेन्नू के साथ भी ऐसा ही है।
निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए वैज्ञानिकों ने OSIRIS-REx स्पेसक्राफ्ट द्वारा ली गईं कई हाई-रेजॉलूशन इमेज से एस्टरॉयड पर दिख रहे रॉक फ्रैक्चर का विश्लेषण किया। यह विश्लेषण वैज्ञानिकों को जानने में मदद करेगा कि बेन्नू जैसे एस्टरॉयड्स पर छोटे कणों के टूटने में कितना समय लगता है। ये या तो अंतरिक्ष में जा सकते हैं या एस्टरॉयड की सतह पर ही रह सकते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, फ्रांस की यूनिवर्सिटी कोटे डी'ज़ूर (Cote d'Azur) के सीनियर साइंटिस्ट मार्को डेल्बो ने कहा कि हजारों साल का वक्त बहुत धीमा लग सकता है, लेकिन हमने सोचा था कि एस्टरॉयड की सतह के रीजेनरेशन में लाखों साल लगे होंगे। हमें यह जानकर हैरानी हुई कि एस्टरॉयड पर जियोलॉजिकली एजिंग और वेदरिंग की प्रक्रिया इतनी जल्दी होती है।
तेजी से तापमान बदलने की वजह से बेन्नू में एक इंटरनल स्ट्रेस पैदा हो गया है, जो चट्टानों को तोड़ता है। जानकारी के अनुसार, बेन्नू पर हर 4.3 घंटे में सूरज उगता है। यहां दिन का मैक्सिमम टेंपरेचर लगभग 127 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है और रात का न्यूनतम तापमान शून्य से 23 सेल्सियस नीचे जा सकता है। इसी ने बेन्नू पर स्ट्रेस पैदा किया है।
OSIRIS-REx स्पेसक्राफ्ट से ली गई तस्वीरों का सर्वे करते हुए वैज्ञानिकों ने एस्टरॉयड में फ्रैक्चर्स को देखा। वैज्ञानिकों ने कहा तस्वीरें इशारा करती हैं कि वहां दिन और रात के बीच तापमान में बड़े फर्क से यह फ्रैक्चर्स हुए हैं। डेल्बो और उनके सहयोगियों ने 1,500 से अधिक फ्रैक्चर्स को मापा। इनमें से कुछ टेनिस रैकेट से छोटे जबकि बाकी टेनिस कोर्ट से ज्यादा लंबे मालूम हुए। उन्होंने पाया कि फ्रैक्चर मुख्य रूप से उत्तर-पश्चिम-दक्षिण-पूर्व दिशा में हैं, जो दर्शाता है कि ऐसा सूर्य की वजह से है। इन फ्रैक्चर्स की समयसीमा 10 हजार से एक लाख साल तक बांटने के लिए वैज्ञानिकों ने कंप्यूटर मॉडल का इस्तेमाल किया। अपने मिशन के तहत OSIRIS-REx स्पेसक्राफ्ट 24 सितंबर 2023 को बेन्नू से पृथ्वी पर एक सैंपल लेकर लौटेगा।