दक्षिण प्रशांत महासागर में स्थित देश टोंगा (Tonga) में इस साल की शुरुआत में एक ज्वालामुखी (volcano) फट गया था। यह ज्वालामुखी समुद्र के नीचे फटा था, जिसने बड़े स्तर पर दबाव वाली लहरें या शॉक वेव्स पैदा कीं। इन शॉक वेव्स की वजह से 10 हजार किलोमीटर दूर अमेरिका के अलास्का में भी लोगों ने पानी में शोर और उछाल आने की सूचना दी थी। अब नासा (Nasa) के एक सैटेलाइट से मिली जानकारी के अनुसार, हमारे ग्रह पर हुए इस सबसे शक्तिशाली ज्वालामुखी विस्फोट ने वायुमंडल में इतना पानी वाष्पित कर दिया कि उससे पृथ्वी की सतह अस्थायी रूप से गर्म होने की संभावना है। बताया जाता है कि इस विस्फोट ने वाष्प के रूप में पानी का बहुत बड़ा ढेर समताप मंडल (stratosphere) में भेजा, जो पृथ्वी की सतह से 12 से 53 किलोमीटर के बीच का वायुमंडल है। सैटेलाइट से पता चला है कि ज्वालामुखी विस्फोट से जितना पानी समताप मंडल में वाष्प बनकर पहुंच गया, उससे 58 हजार ओलिंपिक साइज के स्विमिंग पूल को भरा जा सकता था।
नासा के ऑरा (Aura) सैटेलाइट पर स्थित माइक्रोवेव लिम्ब साउंडर इंस्ट्रूमेंट (Microwave Limb Sounder instrument) ने यह पता लगाया है। यह सैटेलाइट जल वाष्प, ओजोन और अन्य वायुमंडलीय गैसों को मापता है। ज्वालामुखी विस्फोट के बाद वाष्पित हुए पानी की रीडिंग से वैज्ञानिक भी हैरान रह गए। उनका अनुमान है कि उस विस्फोट से समताप मंडल में 146 टेराग्राम पानी पहुंचा। एक टेराग्राम एक ट्रिलियन ग्राम के बराबर होता है। ध्यान देने बात है कि पानी की यह मात्रा समताप मंडल में पहले से मौजूद 10 फीसदी पानी के बराबर थी।
आंकड़े बताते हैं कि यह जल वाष्प साल 1991 में फिलीपींस में माउंट पिनातुबो विस्फोट के बाद समताप मंडल तक पहुंचने वाले पानी की मात्रा का लगभग चार गुना है। इससे जुड़ा अध्ययन पिछले महीने
जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित हुआ है।
टोंगा के ज्वालामुखी में हुआ विस्फोट पिछले 140 साल में सबसे बड़ा विस्फोट है। टोंगा की घटना की तुलना 1883 में इंडोनेशिया में हुए क्राकाटाऊ विस्फोट से की गई है। उस घटना में 30 हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे। बताया जाता है कि टोंगा ज्वालामुखी विस्फोट से जो ऊर्जा निकली, वह 100 हिरोशिमा बमों के स्केल के बराबर थी।
पानी के अंदर ज्वालामुखी फटने का शोर अलास्का तक सुना गया था। इससे उफनाए समुद्री तूफान ने जापान और अमेरिका के तटीय इलाकों में बाढ़ के हालात पैदा कर दिए थे। पेरू में दो लोगों की मौत हो गई थी। न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया के तटीय इलाकों से भी नुकसान की खबरें आई थीं। विस्फोट के बाद 22 किलोमीटर ऊपर तक राख और धुएं का गुबार देखा गया था। ज्वालामुखी विस्फोट से जो मलबा निकला, वो समुद्र में समा गया।