पृथ्वी पर पानी कहां से आया? क्या इस सवाल का जवाब उस उल्कापिंड में छुपा है, जो ब्रिटेन में एक ड्राइव-वे पर क्रैश लैंड हो गया था। जर्नल साइंस एडवांसेज में 16 नवंबर को पब्लिश हुए एक नए विश्लेषण ने इस थ्योरी को समझाने की कोशिश की है। 4.6 अरब साल पुरानी यह अंतरिक्ष चट्टान पिछले साल फरवरी में विंचकोम्बे (Winchcombe) में एक घर के सामने गिरी थी। बताया जाता है कि इसमें पानी मौजूद है, जो पृथ्वी पर पाए जाने वाले पानी की रासायनिक संरचना से काफी मिलता-जुलता है। यह तथ्य इस बात पर रोशनी डाल सकता है कि हमारे ग्रह पर पानी कहां से आया। क्या उल्कापिंडों के जरिए पानी पृथ्वी पर पहुंचा।
पिछले साल क्रैश लैंड हुए उल्कापिंड को वैज्ञानिकों ने विंचकोम्ब उल्कापिंड नाम दिया है। लंदन में नेशनल हिस्ट्री म्यूजियम के रिसर्चर्स ने इस अंतरिक्ष चट्टान की जांच की।
उन्होंने पाया कि इसमें पृथ्वी के पानी के जैसा ही पानी है। वैज्ञानिकों की यह स्टडी उस सिद्धांत का समर्थन करती है, जो कहता है कि पृथ्वी को एस्टरॉयड्स की वजह से पानी का विशाल भंडार मिला है।
स्टडी के प्रमुख लेखक और म्यूजियम से जुड़े रिसर्चर, एशले किंग ने द गार्जियन को बताया कि विंचकोम्बे जैसे उल्कापिंड पृथ्वी के महासागरों के बारे में अच्छी जानकारी देते हैं। यह सुझाव देते हैं कि एस्टरॉयड ही हमारी धरती पर पानी का मुख्य स्रोत थे। रिसर्चर इस सैंपल पर अगले कुछ वर्षों तक काम करते रहेंगे। उन्हें कई और जानकारियां मिलने की उम्मीद है। इससे हमारे सौर मंडल की उत्पत्ति के बारे में भी पता चलने की उम्मीद है।
इससे पहले भी एक
शोध में ऐसी ही जानकारी सामने आई थी। करीब 6 साल के एक जापानी अंतरिक्ष मिशन में जुटाए गए गए दुर्लभ नमूनों का विश्लेषण करने के बाद वैज्ञानिकों ने कहा था कि हमारे सौर मंडल के बाहरी किनारों से एस्टरॉयड्स द्वारा पानी पृथ्वी पर लाया गया हो सकता है। जीवन की उत्पत्ति और ब्रह्मांड के निर्माण पर रोशनी डालने के लिए रिसर्चर्स साल 2020 में एस्टरॉयड रयुगु (Ryugu) से पृथ्वी पर लाए गए मटीरियल की जांच कर रहे थे।
5.4 ग्राम (0.2 औंस) वजन वाली चट्टान और धूल को एक जापानी स्पेस प्रोब, “हायाबुसा -2' (Hayabusa-2) ने इकट्ठा किया था। यह प्रोब उस आकाशीय पिंड पर उतरा था और उसने पिंड के सर्फेस पर एक ‘प्रभावक' (impactor) को फायर किया था। इस साल जून में रिसर्चर्स के एक समूह ने कहा था कि उन्हें कार्बनिक पदार्थ मिला है, जिससे पता चलता है कि पृथ्वी पर जीवन के कुछ बिल्डिंग ब्लॉक्स, अमीनो एसिड अंतरिक्ष में बने हो सकते हैं।