इन्सानों की सबसे करीबी प्रजाति बंदरों को माना जाता है। जिनमें चिम्पैंजी आदि भी शामिल हैं। तो क्या फिर मनुष्य भी कभी पेड़ों पर लटकता हुआ जीवन बिताता होगा! आपके मन में भी अगर ऐसा ही कुछ ख्याल आता है तो इस संबंध में एक नई शोध सामने आई है। जो बताती है कि शुरुआती दौर का मनुष्य कैसे अपना जीवन बिताता रहा होगा, कैसे चलता होगा।
वैज्ञानिकों ने शोध कर निष्कर्ष निकाला है कि लगभग 32 लाख साल पहले का
मनुष्य कैसा रहा होगा और कैसे चलता होगा। रिसर्च में यह नतीजा निकला है कि उस समय का मनुष्य सीधा खड़ा होता होगा और खड़ा होकर ही चलता होगा। शोधकर्ताओं ने ऑस्ट्रेलोपिथेकस एफ्रेंसिस (Australopithecus afarensis) नामक जीवाश्म को स्टडी किया है। यह ऐसा जीवाश्म है जो शुरुआती मनुष्य के समय का है। जीवाश्म का नाम AL 288-1 है जिसे लूसी नाम दिया गया है। यह इथोपिया में 1974 में पाया गया था, जिस पर गहन शोध हाल ही में किया गया है।
शोधकर्ताओँ का कहना है कि जीवाश्म एक मादा का है जिसमें इसका 40 प्रतिशत कंकाल मौजूद है। यह दुर्लभ जीवाश्म है। इस स्टडी को
Royal Society Open Science में
प्रकाशित किया गया है। स्टडी की प्रमुख लेखक, लीवरहल्म ट्रस्ट अर्ली करियर फेलो और मैकडॉनल्ड्स इंस्टीट्यूट फॉर आर्कियोलॉजिकल रिसर्च में आइजैक न्यूटन ट्रस्ट फेलो, डॉ. एशले एलए वाइजमैन का कहना है कि जो चीज इन्सानों को इन्सान होने की पहचान दिलाती है, वह है दो पैरों पर खड़े होकर चलना। लेकिन इस पर एक लम्बे समय से वाद-विवाद चला आ रहा है कि इसका
विकास कैसे हुआ और क्यों हुआ।
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इस बारे में डॉक्टर एशले ने आगे बताते हुए कहा कि अब कम्प्यूटिंग मॉडलिंग की मदद से इस सवाल का जवाब ढूंढना पहले से आसान हो गया है। शरीर में मौजूद मांस या muscle शरीर को चलने फिरने में मदद करता है। इसकी मदद से आदमी चल सकता है, दौड़ सकता है, कूद सकता है और नाच भी सकता है। एशले ने कहा कि अगर हमें पता लगाना है कि हमारे पूर्वज कैसे चलते थे, तो हमें उनके उत्तकों को एक बार फिर से बनाना होगा।
स्टडी में लूसी नामक
जीवाश्म का जिक्र है जो कि एक मादा है। यह हाइट में 3.3 फीट की बताई गई है। इसका बंदर जैसा चेहरा है। वैज्ञानिकों ने इसके उत्तकों को फिर से बनाकर देखा। जिससे पता चला कि उसके पैर काफी मजबूत थे। कूल्हों की मासपेशियां और घुटने भी काफी मजबूत पाए गए जिससे कहा जा सका कि वह सीधी खड़ी होकर चलती होगी।