वैज्ञानिकों को इतिहास से एक बेहद हैरान करने वाली खोज हाथ लगी है। इटली के रोम के पास कोली अल्बानी ज्वालामुखीय क्षेत्र के अंदर 30 हजार साल पुराने गिद्ध के पंखों के अवशेष पाए गए हैं। ये अवशेष खास तरीके से संरक्षित मिले हैं और इनके साथ कुछ ऐसे रिकॉर्ड मिले हैं जो इतिहास में इससे पहले कभी भी दर्ज नहीं किए गए हैं। इन अवशेषों में पक्षी के पंखों और पलकों के अंश शामिल हैं, जिन्हें पहली बार 1889 में खोजा गया था। ये अवशेष एक ग्रिफॉन गिद्ध के हैं।
इटली में पाए गए गिद्ध के इन अवशेषों की खास बात है कि इनको संरक्षित रखने की प्रक्रिया। इस बारे में वैज्ञानिकों को अभी तक कोई भी सुराग नहीं लगा है कि आखिर इन्हें किस तरीके से संरक्षित किया गया होगा। नए शोध से पता चलता है कि पंख ज्वालामुखीय राख में ढके हुए थे, जो बाद में सिलिकॉन युक्त जिओलाइट क्रिस्टल में बदल गए, जिससे गिद्ध के नाजुक ऊतकों की संरचना बरकरार रही। यह ज्वालामुखीय पदार्थों में इस तरह के संरक्षण का पहला उदाहरण है। यानी इससे पहले संरक्षण में ज्वालामुखीय राख के इस्तेमाल का कोई रिकॉर्ड मौजूद नहीं है।
स्टडी को
Geology में प्रकाशित किया गया है। इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप और रासायनिक परीक्षण का उपयोग करके किए गए विश्लेषण से पता चला कि पंख त्रि-आयामी (three-dimensional) रूप में जीवाश्मिकृत थे। यह सामान्य जीवाश्मीकरण प्रक्रिया से बिल्कुल अलग है, जहां पंख दो-आयामी कार्बन छाप छोड़ते हैं। इससे पहले त्रि-आयामी पंख जीवाश्मों की पहचान केवल एम्बर (amber) में ही की गई थी।
आयरलैंड के यूनिवर्सिटी कॉलेज कॉर्क की जीवाश्म विज्ञानी वैलेंटिना रॉसी के नेतृत्व में इस स्टडी को किया गया है। शोधकर्ताओं ने पाया कि जिओलाइट खनिजों ने पंखों के सूक्ष्म विवरण को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। रॉसी ने इस खोज को अद्भुत बताया है और इस बात पर रोशनी डाली कि ज्वालामुखीय राख में संरक्षित पंखों का पहले कभी डॉक्यूमेंटेशन नहीं किया गया। यह जीवाश्म सबसे पहले माउंट टस्कोलो की तलहटी में एक भूमि मालिक द्वारा खोजा गया था। तब इसे ज्वालामुखीय चट्टान में असामान्य रूप से संरक्षित होने के कारण जाना जाता था।
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