ऑनलाइन फ्रॉड अब एक कदम आगे पहुंच गया है। अगर आप सोच रहे हैं कि आप किसी अनजान लिंक पर क्लिक न करें तो आप इससे बच सकते हैं, तो यह खबर आपके लिए ही है। अब ऑनलाइन जालसाजों ने जीरो-क्लिक (zero-click) मालवेयर का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। क्या होता है जीरो क्लिक अटैक, यह कैसे काम करता है, आइए आपको विस्तार से बताते हैं।
जीरो-क्लिक (zero-click) मालवेयर क्या हैजीरो-क्लिक (zero-click) मालवेयर का इस्तेमाल अब ऑनलाइन फ्रॉड में होने लगा है। जैसा कि इसके नाम से पता चलता है, जीरो क्लिक यानी बिना क्लिक किए भी किसी को फ्रॉड का शिकार बनाया जा सकता है। यानी कि अगर यूजर किसी अनजान लिंक के लिए कोई एक्शन नहीं भी लेता है तब भी फ्रॉड या साइबर हैक हो सकता है। इसमें पीड़ित को पता भी नहीं चलता है कि उसके साथ कुछ गलत हो रहा है। ये पूरी तरह से रिमोट अटैक होते हैं जिनमें यूजर का एक्शन करना या न करना मायने नहीं रखता है।
जब भी कोई अनचाहा व्यक्ति आपके डिवाइस को कंट्रोल करने की कोशिश करता है उसके लिए एक स्पाई सॉफ्टवेयर आपके डिवाइस में एक्टिवेट करने की कोशिश की जाती है। इसके लिए जालसाज मोबाइल, लैपटॉप या टैबलेट पर एक लिंक भेजते हैं जिस पर क्लिक करते ही स्पाई सॉफ्टवेयर डिवाइस में एक्टिवेट हो जाता है। लेकिन जीरो-क्लिक में ऐसा नहीं है।
जीरो-क्लिक (zero-click) मालवेयर को इंस्टॉल करने के लिए किसी लिंक पर क्लिक करवाने की भी जरूरत नहीं होती है। इसलिए यह और ज्यादा खतरनाक माना जाता है। चूंकि यहां पर किसी तरह की एक्टिविटी नहीं होती है तो इसके निशान खोजना भी बहुत मुश्किल होता है। इनका पता लगा पाना एक बेहद कठिन काम है।
Zero-click अटैक कई सालों से देखने में आ रहे हैं। स्मार्टफोन्स के आने के बाद से इनका काम और आसान हो गया है कि स्मार्टफोन अब कहीं ज्यादा पर्सनल डेटा स्टोर करके रखते हैं। अब व्यक्तिगत रूप से लोग, और संस्थाएं तक मोबाइल डिवाइसेज पर निर्भर करने लगे हैं। इसलिए जीरो-क्लिक अटैक की जानकारी होना भी बहुत आवश्यक हो जाता है।
जीरो-क्लिक (zero-click) मालवेयर कैसे काम करता हैजीरो-क्लिक हैक किसी सिस्टम में घुसने के लिए डेटा वैरिफिकेशन लूपहोल का इस्तेमाल करता है। किसी सिस्टम में मौजूद अधिकतर सॉफ्टवेयर साइबर सेंध से बचाने के लिए डेटा वैरिफिकेशन का इस्तेमाल करते हैं। इनमें मौजूद हल्का सा लूपहोल ही साइबर अपराधियों को अटैक करने का मौका दे देता है। अक्सर, जीरो-क्लिक अटैक उन ऐप्स को टारगेट करते हैं जो मैसेजिंग या वॉयस कॉलिंग सुविधा देते हैं क्योंकि ये सर्विस अविश्वसनीय सोर्स से डेटा रिसीव करने और उसे समझने के लिए डिज़ाइन किए गए होते हैं। हमलावर आमतौर पर डिवाइस से समझौता करने वाले कोड को इंजेक्ट करने के लिए खास बनाए गए डेटा का इस्तेमाल करते हैं। इनमें छिपे हुए टेक्स्ट मैसेज या इमेज फाइल शामिल हो सकते हैं।