बहुत से रिटेलर्स अक्सर कुछ सर्विसेज देने के लिए कस्टमर्स का मोबाइल नंबर लेते हैं। मोबाइल नंबर नहीं बताने पर रिटेलर्स सर्विसेज देने से इनकार भी कर देते हैं। इस समस्या का जल्द समाधान हो सकता है। कंज्यूमर अफेयर्स मिनिस्ट्री ने एक एडवाइजरी जारी कर रिटेलर्स को विशेष सर्विसेज देने के लिए कस्टमर्स की व्यक्तिगत संपर्क से जुड़ी जानकारी नहीं लेने को कहा है।
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एडवाइजरी इसे लेकर कई शिकायतों के बाद जारी की गई है। कस्टमर्स की शिकायत है कि बहुत से रिटेलर्स मोबाइल नंबर उपलब्ध नहीं कराने पर उन्हें सर्विसेज देने से मना कर रहे हैं। कंज्यूमर अफेयर्स मिनिस्ट्री के सेक्रेटरी ने संवाददाताओं को बताया, "विक्रेताओं का कहना है कि व्यक्तिगत संपर्क के विवरण नहीं होने पर वे बिल को जेनरेट नहीं कर सकते। कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट के तहत यह एक अनुचित और रुकावट वाला
कारोबारी तरीका है। यह जानकारी लेने के पीछे कोई महत्वपूर्ण कारण नहीं है।" उनका कहना था कि इससे प्राइवेसी से जुड़ी आशंका भी होती है। इस वजह से रिटेल इंडस्ट्री के साथ ही CII और FICCI जैसे औद्योगिक संगठनों को भी एडवाइजरी जारी की गई है।
देश में कस्टमर्स को रिटेलर्स के बिल जेनरेट करने के लिए अपना मोबाइल नंबर देना अनिवार्य नहीं है। हालांकि, कई बार कोई खरीदारी करने के बाद रिटेलर ट्रांजैक्शन को पूरा करने के लिए मोबाइल नंबर पर जोर देते हैं, जिससे कस्टमर्स के लिए अजीब स्थिति हो जाती है। सरकार ने व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा के लिए कानून लागू नहीं किया है। पिछले महीने सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि वह संसद के आगामी सत्र में डिजिटल डेटा प्रोटेक्शन बिल पेश करेगी। सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की बेंच ने इस मामले की अगली सुनवाई अगस्त में तय की है।
केंद्र सरकार की ओर से कोर्ट में पेश हुए अटॉर्नी जनरल, R Venkatramani ने बेंच को बताया था कि व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा पर नया बिल तैयार है और इसे संसद के मॉनसून सत्र में पेश किया जाएगा। बहुत से देशों में व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा के लिए कड़े कानून हैं। इनके तहत किसी व्यक्ति का डेटा लेने से पहले रिटेलर्स या फर्मों को सहमति लेनी होती है। इसके साथ ही उन्हें यह भी बताना होता है कि डेटा का किस तरह इस्तेमाल किया जाएगा और इसे सुरक्षित रखने के लिए कौन से उपाय किए जाएंगे।
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