प्लूटो (Pluto), जिसे बौना ग्रह भी कहा जाता है, 1930 में खोजा गया था। इसके अजब और चढ़ावदार ऑर्बिट के कारण यह वैज्ञानिकों की रुचि का विषय रहा है। नई रिसर्च बताती है कि इसके ऑर्बिट में छोटे टाइमस्केल पर गड़बड़ी हो सकती है। बड़े टाइमस्केल पर इसका ऑर्बिट स्थिर दिखता है। इसका अर्थ है कि प्लूटो का ऑर्बिट मौलिक रूप से दूसरे ग्रहों से अलग है। अधिकतर ग्रह सूर्य के चारों और गोलाकार ऑर्बिट में घूमते हैं लेकिन प्लूटो चपटे ऑर्बिट में चलता है।
प्लूटो का ऑर्बिट सोलर सिस्टम के एक्लिप्टिक प्लेन में 17 डिग्री उठा हुआ है। प्लूटो सूरज का एक चक्कर लगाने में 248 साल का समय लेता है। इसका मतलब यह भी है कि प्लूटो प्रत्येक चक्र के दौरान नेपच्यून की तुलना में सूर्य के करीब 20 साल बिताता है।
जब ये दोनों ग्रह एक दूसरे के रास्ते को काटते हैं, तो भी उन्हें एक-दूसरे से टकराने से क्या रोकता है? शोधकर्ताओं का कहना है कि एक ऑर्बिटल रेजोनेंस जिसे "मीन मोशन रेजोनेंस (mean motion resonance)" के रूप में जाना जाता है, इन्हें एक-दूसरे से टकराने से रोकता है। प्लूटो के ऑर्बिट में नेपच्यून के साथ एक स्टेबल 3:2 मीन मोशन रेजोनेंस है। प्लूटो सूर्य का चक्कर लगाने में जो दो ऑर्बिट बनाता है, नेप्च्यून उनको तीन बनाता है। इसलिए ये दोनों एक दूसरे से नहीं टकराते हैं।
यह रिसर्च एरिज़ोना यूनिवर्सिटी से डॉ रेणु मल्होत्रा और चिबा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से ताकाशी इतो ने की है। इसे प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में
प्रकाशित किया गया है। उन्होंने कहा है कि हमने अपनी जांच में पाया है कि बृहस्पति प्लूटो पर स्टेबल करने वाला प्रभाव डालता है जबकि यूरेनस या अरूण ग्रह इस पर डगमगाने वाला प्रभाव डालता है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि आश्चर्यजनक रूप से प्लूटो का ऑर्बिट बड़ी गड़बड़ी के बहुत करीब है।
Pluto को 1930 में खगोलशास्त्री क्लाइड टॉम्बो ने खोजा था। नासा ने न्यू होराइजन्स मिशन के दौरान 14 जुलाई 2015 को पहली बार इसका दौरा किया गया था।