Oscar Award 2023 के लिए भारत की ओर से गुजराती फिल्म छेल्लो शो (chhello show) को ऑफिशियल एंट्री के तौर पर भेजा गया है। ‘छेल्लो शो' का मतलब होता है लास्ट फिल्म शो (Last Film Show)। यह फिल्म 95वें अकैडमी अवॉर्ड्स में बेस्ट इंटरनेशनल फीचर फिल्म कैटिगरी में भारत का प्रतिनिधित्व करेगी। भारत में यह फिल्म 14 अक्टूबर को रिलीज की जाएगी। ‘छेल्लो शो' ने ऑस्कर नॉमिनेशन की रेस में शामिल कई बड़ी फिल्मों को पीछे छोड़ दिया। इनमें ब्रह्मास्त्र (Brahmastra), आरआरआर (RRR), रॉकेट्री - द नंबी इफेक्ट (Rocketry – The Nambi Effect), झुंड (Jhund), बधाई दो (Badhaai Do) और अनेक (Anek) शामिल हैं। ऐसे में हर ओर यही चर्चा है कि आखिर जूरी ने ‘छेल्लो शो' का चयन ही क्यों किया। इसकी एक वजह फिल्म कहानी को बताया जा रहा है, जो इसे बाकी फिल्मों से कतार में अलग खड़ा करती है। आइए जानते हैं क्या है ‘छेल्लो शो' की कहानी।
‘छेल्लो शो' का निर्देशन पान नलिन ने किया है। जैसा कि हमने आपको बताया यह एक गुजराती शब्द है, जिसका मतलब होता है आखिरी शो (Last Film Show)। फिल्म की कहानी एक 9 साल के बच्चे पर केंद्रित है। उसका नाम समय है। समय में दिल में सिनेमा बसता है। फिल्म की कहानी महाराष्ट्र के सौराष्ट्र के चलाला गांव की बात कहती है। फिल्म में दिखाया गया है कि समय अपने पिता के साथ उनकी चाय की दुकान पर काम करता है। चाय की दुकान एक रेलवे स्टेशन पर है, जहां चुनिंदा ट्रेन ही रुकती हैं। इस वजह से परिवार आर्थिक संकट से जूझ रहा है।
एक दिन समय अपने परिवार के संग फिल्म देखने जाता है और सिनेमा की ओर आकर्षित हो जाता है। पढ़ाई में उसका मन गलता नहीं और थिएटर व सिनेमा में उसकी रुचि बढ़ती जाती है। एक दिन समय की मुलाकात प्रोजेक्टर ऑपरेटर फैजल से होती है। प्रोजेक्टर वाले रूम में फिल्म देखने के बदले समय उसे अपना टिफिन ऑफर करता है। डील हो जाती है और समय, प्रोजेक्टर रूम में फिल्में देखने लगता है। यही से उसकी सिनेमा की ट्रेनिंग शुरू होती है।
एक ओर, समय के पिता की ख्वाहिश है कि उनका बेटा पढ़ाई में मन लगाए। परिवार पर ध्यान दे, ताकि उनकी माली हालत ठीक हो सके, जबकि दूसरी ओर समय सिनेमा देखने में जुटा है। एक दिन समय देसी जुगाड़ करके एक प्रोजेक्टर बनाता है। फिल्म में आगे क्या होता है, यह जानने के लिए आपको 14 अक्टूबर तक का इंतजार करना होगा। यह फिल्म भारतीय सिनेमाघरों के हालात को भी दिखाती है। देश का सिनेमा रील लगाकर दिखाई जाने वाली फिल्मों से डिजिटल की ओर बढ़ गया है। इस दौर में कई सिंगल स्क्रीन थिएटर खत्म हो गए हैं।