लीप सेकंड (leap seconds) जिसके तहत धरती के समय को 1 सेकंड आगे बढ़ाया जाता है, यह प्रैक्टिस अब खत्म हो जाएगी। दुनिया भर के वैज्ञानिकों और सरकारों के प्रतिनिधियों ने फैसला किया है कि साल 2035 तक ऑफिशियल घड़ियों में लीप सेकंड का सिस्टम खत्म कर दिया जाएगा। 18 नवंबर को पेरिस में जनरल कॉन्फ्रेंस ऑन वेट एंड मेश़र्ज़ (CGPM) में लीप सेकंड को स्क्रैप करने पर फैसला लिया गया। पहली नजर में यह फैसला भले मामूली नजर आए, लेकिन टेक्नॉलजी फ्रेंडली होती दुनिया के सामने आने वाली बड़ी मुश्किलों को समाधान मिल गया है।
क्या होता है लीप सेकंड
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लीप सेकंड UTC (Universal Time Coordinated) के लिए एक सेकंड का समायोजन है। आसान भाषा में समझें, तो इंटरनेशनल एटॉमिक टाइम घड़ी के जरिए समय को मापने और पृथ्वी के चक्कर लगाने के आधार पर समय मापने के दौरान आने वाले फर्क को खत्म करने के लिए जोड़ा या घटाया जाने वाला सेकंड ही लीप सेकंड कहलाता है। पहली बार यह थ्योरी साल 1972 में सामने आई। तब से ही लीप सेकंड को जोड़ा जा रहा है। जून या दिसंबर में सेकंड को जोड़ा जाता है।
वैज्ञानिकों का तर्क रहा है कि लीप ईयर के नियम के तहत हर 4 साल पर कैलेंडर में एक अतिरिक्त दिन जोड़ा जाता है, लेकिन लीप सेकंड के मामले में ऐसी गणना नहीं की जा सकती। यह तय नहीं किया जा सकता कि किस अवधि के बाद लीप सेकंड को जोड़ा जाए।
इस प्रैक्टिस को क्यों किया जा रहा खत्म?
इसकी सबसे बड़ी वजह है कि पृथ्वी की कक्षा का सटीक अनुमान नहीं लगाया जा सकता। साल 2020 के बाद से कथित तौर पर पृथ्वी का घूर्णन तेज हो रहा है। इस वजह से भविष्य में लीप सेकेंड को जोड़ने के बजाए हटाना पड़ सकता है।
तमाम टेक कंपनियां भी इसे हटाने की मांग कर रही थीं। इनमें फेसबुक की पैरंट कंपनी मेटा (Meta) भी शामिल है। एक ब्लॉग में मेटा ने बताया था कि नए लीप सेकंड के दखल से उसके सर्वर साल 2012 में 40 मिनट तक डाउन रहे थे। मेटा के अलावा क्लाउडफेर ने भी इस परेशानी को झेला था, जब नए लीप सेकंड की वजह साल 2017 में उसकी DNS सर्विस डाउन हो गई थी। यह सब हुआ क्योंकि कंप्यूटर नेटवर्क को लीप सेकंड के हिसाब से तैयार करना पड़ता है। बहरहाल, अब यह मुश्किल खत्म हो जाएगी।