सैटेलाइट्स को स्पेस में भेजने के लिए दुनियाभर की अंतरिक्ष एजेंसियां रॉकेट का इस्तेमाल करती हैं। उनमें से सिर्फ एलन मस्क की स्पेस कंपनी स्पेसएक्स (SpaceX) का रॉकेट रीयूजेबल है। ज्यादातर स्पेस एजेंसियों के रॉकेट अंतरिक्ष में अपना काम पूरा करके मलबे (rocket debris) में बदल जाते हैं और धरती पर गिर जाते हैं। ज्यादातर बार इनके गिरने की जगह का पता नहीं चलता। पहली बार एक जापानी सैटेलाइट ने 3 टन के भारी भरकम रॉकेट मलबे को कैप्चर किया है।
रिपोर्ट्स के अनुसार, एस्ट्रोस्केल जापान (Astroscale Japan) के एक सैटेलाइट ने 15 साल पुराने रॉकेट के टुकड़े का पता लगाया और उसकी तस्वीर क्लिक की। दिलचस्प है कि एस्ट्रोस्केल को इसी साल फरवरी में लॉन्च किया गया था। उसने रॉकेट मलबे तक पहुंचने के लिए सैटेलाइट में लगे कैमरों और सटीक कैलकुलेश का इस्तेमाल किया।
सैटेलाइट का शुरुआती मकसद अंतरिक्ष मलबे की तस्वीर लेना, उसकी कंडीशन को डॉक्युमेंट करना साथ ही यह साबित करना था कि सैटेलाइट किसी अंतरिक्ष मलबे तक पहुंच सकता है या नहीं।
एस्ट्रोस्केल जापान का मकसद भविष्य में अंतरिक्ष मलबे को सुरक्षित रूप से हटाना है। वह रोबोटिक हथियारों से लैस एक और सैटेलाइट लॉन्च करना चाहती है। जिस रॉकेट मलबे का पता लगाया गया, वह भी जापान का ही है। रॉकेट की मदद से साल 2009 में एक एनवायरनमेंटल सेंसिंग सैटेलाइट लॉन्च किया गया था।
गौरतलब है कि स्पेस मलबे ने दुनियाभर के देशों की चिंता बढ़ाई है। रूस, अमेरिका और चीन की स्पेस एजेंसियां आए दिन अपने मिशन लॉन्च करती हैं और अंतरिक्ष मलबे को बढ़ा रही है। अमेरिका तो चीन पर आरोप लगा चुका है कि चीनी स्पेस एजेंसी अपने अंतरिक्ष मलबे का सही से निपटारा नहीं करती। हालांकि पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करन के दौरान आमतौर पर यह ‘कचरा' जलकर खत्म हो जाता है। या प्रशांत महासागर में गिर जाता है। कुछेक मामलों में ही अंतरिक्ष मलबे के टुकड़े आबादी वाले इलाकों में गिरे हैं।
9000 मीट्रिक टन मलबा है स्पेस में
रिपोर्टों के अनुसार, साल 2022 तक 9 हजार मीट्रिक टन से ज्यादा स्पेस मलबा हमारे ग्रह की परिक्रमा कर रहा है। इसकी वजह से मौजूदा सैटेलाइट्स प्रभावित हो सकते हैं। यह पृथ्वी पर कम्युनिकेशन बाधित कर सकता है और अंतरिक्ष यात्रियों का जोखिम बढ़ा सकता है।