पृथ्वी को नीला ग्रह भी कहा जाता है। कारण है इसके नीले महासागर जो अंतरिक्ष से इसे नीले रंग की बॉल के जैसे दिखाते हैं। लेकिन क्या पृथ्वी हमेशा से नीले सागरों से घिरी थी? नई स्टडी कुछ और ही कहती है। पॉपुलर टीवी शो कॉसमॉस (Cosmos) में शो के होस्ट Carl Sagan एक बार पृथ्वी को पेल ब्लू डॉट (pale blue dot) के रूप में वर्णित किया था। दरअसल कार्ल Voyager 1 द्वारा ली गई पृथ्वी की एक फोटो के बारे में बता रहे थे। कहा जाता है कि पृथ्वी एक समय में नीली नहीं थी। यह किसी और ही रंग में नजर आती थी।
इंसानों ने अभी तक
पृथ्वी को नीले रंग में ही देखा है। नई स्टडी कहती है कि अतीत में एक ऐसा भी समय था जब पृथ्वी के महासागर हरे रंग में चमकते थे!
Nature जर्नल में इस स्टडी को प्रकाशित (
via) किया गया है। जिसमें बताया गया है कि लगभग 2.4 अरब साल पहले, आर्कियन काल (Archaean era) में पृथ्वी के महासागर हरे रंग में नहाए नजर आते थे। पृथ्वी पर जीवन के पनपने से पहले, महासागरों की तलहटी में फूटने वाले हाइड्रोथर्मल वेंट ने पानी में रिड्यूस्ड आयरन (ऑक्सीजन की गैरमौजूदगी में जमा हुआ लोहा) ऊपर पंप कर दिया, जिससे समुद्र लौह (ferrous iron) से भर गया।
चूंकि उस समय वायुमंडल में ऑक्सीजन की मौजूदगी नहीं थी, तो सागर आसमान में रिफ्लेक्ट भी नहीं हो पा रहे थे। साइनोबैक्टीरिया के आने के बाद ऑक्सीजन पानी में बनने लगी। इस ऑक्सीजन ने लौह (ferrous iron) को फेरिक आयरन (ferric iron) में बदल दिया जिसने जंग जैसे कणों का निर्माण किया।
फेरिक आयरन पानी में ही आयरन हाइड्रॉक्साइड के रूप में पड़ा रहा। इसकी गैर-घुलनशील प्रकृति के कारण इसने एक ऑप्टिकल प्रभाव बनाया जिसने रेड और ब्लू वेवलेंथ को सोख लिया। लेकिन ग्रीन लाइट को इसने इस प्रभाव में से गुजरने दिया। इसी वजह से महासागर हरे रंग में नजर आने लगे। अगर उस समय कैमरा होते तो पृथ्वी अंतरिक्ष से देखने पर एमराल्ड ग्रीन (emerald green) कलर में नजर आती।
इस थ्योरी को वैज्ञानिकों ने सिद्ध भी किया है। शोधकर्ताओं ने फ़ाइकोएरिथ्रोबिलिन नामक एक हरे रंग को सोखने वाले पिग्मेंट का इस्तेमाल करने की सोची। इसके लिए उन्होंने आधुनिक साइनोबैक्टीरिया को आनुवंशिक रूप से इंजीनियर किया। ये संशोधित सूक्ष्मजीव हरे रंग की रोशनी में बेहतर ढंग से विकसित हुए, जो कुछ हद तक प्राकृतिक घटना की नकल थी जो शायद अरबों साल पहले घटित हुई थी।