अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (Nasa) के
पर्सवेरेंस रोवर (Perseverance Rover) ने साल 2021 में मंगल ग्रह की सतह पर लैंड किया था। तब से यह रोवर वहां चहलकदमी करते हुए सैंपल इकट्ठा कर रहा है। पर्सवेरेंस का मकसद मंगल ग्रह से चट्टानों के सैंपल इकट्ठा करके उन्हें सुरक्षित रखना है। उन सैंपलों को पृथ्वी पर वापस लाने के लिए अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (Nasa) साल 2030 तक मिशन लॉन्च कर सकती है। यह रोवर अपने साथ कई इंस्ट्रूमेंट्स भी लेकर गया है, जिनमें से एक है- MOXIE (मार्स ऑक्सीजन इन-सीटू रिसोर्स यूटिलाइजेशन एक्सपेरिमेंट)। इसने मंगल ग्रह के वातावरण में ऑक्सीजन पैदा करके इतिहास रच दिया है।
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी
नासा (Nasa) के
अनुसार, यह कामयाबी भविष्य में मंगल ग्रह पर उपनिवेश (colony) बनाने की दिशा में कारगर हो सकती है। हालांकि यह सिर्फ एक प्रयोग था। MOXIE ने मंगल ग्रह पर सिर्फ 122 ग्राम ऑक्सीजन पैदा की। नासा ने बताया है कि इतनी ऑक्सीजन एक छोटे डॉगी को 10 घंटों तक सांस देने के लिए काफी है।
यह उपलब्धि इसलिए अहम है, क्योंकि धरती से करीब 40 करोड़ किलोमीटर दूर ऑक्सीजन पैदा की गई है। नासा के डेप्युटी एडमिनिस्ट्रेटर पाम मेलरॉय ने कहा कि इस तरह की टेक्नॉलजीज का विकास हमें चंद्रमा और मंगल जैसी जगहों पर लंबे वक्त तक रहने के लिए और मानव मिशनों को आगे बढ़ाने के लिए मजबूती देता है।
नासा ने बताया है कि MOXIE ने बेहतर तरीके से ऑक्सीजन का उत्पादन किया। मंगल ग्रह की एक्ट्रीम कंडीशंस के बावजूद यह पूरे साल वहां ऑक्सीजन पैदा कर सकता है। यह इंस्ट्रूमेंट मंगल ग्रह के वायुमंडल में मौजूद हरेक कार्बन डाइ ऑक्साइड के परमाणु (atom) से ऑक्सीजन परमाणु को अलग करके ऑक्सीजन पैदा करता है।
नासा का कहना है कि इस तरह इकट्ठा की गई ऑक्सीजन फ्यूचर में अंतरिक्ष यात्रियों के लिए सांस लेने वाली हवा के रूप में काम कर सकती है। इसका इस्तेमाल रॉकेट प्रपेलंट पैदा करने के लिए भी हो सकता है। ऐसा हुआ तो मंगल ग्रह पर फ्यूचर मिशन और ज्यादा व्यवहारिक हो सकते हैं। पृथ्वी से कम फ्यूल ले जाने की जरूरत होगी, ज्यादातर फ्यूल मंगल ग्रह पर ही मिल जाएगा।