अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा (Nasa) के जूनो स्पेसक्राफ्ट की बदौलत वैज्ञानिकों को बृहस्पति ग्रह के बारे में एक अहम जानकारी मिली है। उन्हें पता चला है कि बृहस्पति को ढंकने वाले भूरे रंग के अमोनिया बादलों के नीचे छुपे हुए बादल हैं, जो पृथ्वी की तरह ही पानी से बने हैं। पृथ्वी की तरह इन बादलों में भी अक्सर बिजली उत्पन्न होती है। अभी तक वैज्ञानिक यह नहीं नहीं समझ पाए थे कि दोनों ग्रहों के बीच इतना अंतर होने के बावजूद उनमें बिजली चमकने की प्रक्रिया कैसे एक जैसी है।
जूनो स्पेसक्राफ्ट (Juno Spacecraft) बीते कई साल से बृहस्पति ग्रह की परिक्रमा कर रहा है। यह हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा और एक गैसीय ग्रह है। यह इतना बड़ा है कि सभी ग्रह इसमें फिट हो सकते हैं। करीब 1300 पृथ्वी इसमें आ सकती हैं। जूनो स्पेसक्राफ्ट के पिछले 5 साल के डेटा को खंगालने के बाद वैज्ञानिकों ने दिलचस्प जानकारी हासिल की।
न्यूज एजेंसी रॉयटर्स की
रिपोर्ट के अनुसार, वैज्ञानिकों ने पाया कि बृहस्पति ग्रह में भी बिजली चमकने की प्रक्रिया वैसी ही है, जैसी पृथ्वी पर होती है। चेक एकेडमी ऑफ साइंसेज की प्लैनेटरी साइंटिस्ट इवाना कोलमासोवा ने कहा कि बिजली चमकना एक तरह का इलेक्ट्रिकल डिस्चार्ज है, जोकि बादलों के गरजने के कारण होता है। उन्होंने कहा कि ऐसा बादलों में मौजूद बर्फ और पानी के कणों की टक्कर से होता है। बृहस्पति पर बिजली के गजरने का पता सबसे पहले साल 1979 में चला था।
नासा के वायेजर 1 (Voyager 1) स्पेसक्राफ्ट ने इस बारे में जानकारी जुटाई थी। खास यह है कि सौर मंडल के कई अन्य गैस ग्रहों- शनि, यूरेनस और नेपच्यून में भी बिजली चमकने का पता चला है। शुक्र ग्रह को लेकर भी कुछ सबूत मिले हैं, लेकिन उनकी पुष्टि नहीं हो पाई है। वहीं, बृहस्पति और पृथ्वी पर बिजली चमकने की दर समान है, लेकिन डिस्ट्रीब्यूशन अलग-अलग है। वैज्ञानिकों के निष्कर्ष इस सप्ताह प्रतिष्ठित पत्रिका नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित हुए हैं।
बृहस्पति ग्रह प्रमुख रूप से हाइड्रोजन और हीलियम से बना है। लगभग 1 लाख 43 हजार किलोमीटर व्यास वाले इस ग्रह पर तूफान आते रहते हैं। जूनो स्पेसक्राफ्ट साल 2016 से बृहस्पति की परिक्रमा कर रहा है और इसके वातावरण, आंतरिक संरचना, चुंबकीय क्षेत्र आदि के बारे में जानकारी जुटा रहा है।