सूर्य से नजरें मिला रहा भारत का ‘आदित्‍य’! 178 दिनों में हासिल की यह कामयाबी, आप भी जानें

Aditya L1 Mission : आदित्य एल-1 स्‍पेसक्राफ्ट को पिछले साल 2 सितंबर को लॉन्च किया गया था। 6 जनवरी 2024 को इसने L1 पॉइंट की हेलो कक्षा में प्रवेश किया था।

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Written by प्रेम त्रिपाठी, अपडेटेड: 3 जुलाई 2024 13:31 IST
ख़ास बातें
  • Aditya L1 Mission का अहम पड़ाव पूरा
  • पहली हेलो ऑर्बिट की अपनी परिक्रमा को पूरा किया
  • भारतीय स्‍पेस एजेंसी ने दी जानकारी
Aditya L1 Mission : भारत के पहले सौर मिशन ‘आदित्य-एल1' (Aditya L1) स्‍पेसक्राफ्ट ने सूर्य और पृथ्वी के L1 पॉइंट यानी लैंग्रेज पॉइंट के चारों ओर पहली हेलो ऑर्बिट की अपनी परिक्रमा को पूरा कर लिया है। भारतीय स्‍पेस एजेंसी (इसरो) (ISRO) ने यह जानकारी दी है। लैग्रेंज पॉइंट 1 की दूरी पृथ्‍वी से 15 लाख किलोमीटर दूर सूर्य की तरफ है। यही वह जगह है जहां तैनात रहकर आदित्‍य एल-1, सूर्य में होने वाली गतिविधियों को ट्रैक कर रहा है। आदित्य एल-1 स्‍पेसक्राफ्ट को पिछले साल 2 सितंबर को लॉन्च किया गया था। 6 जनवरी 2024 को इसने L1 पॉइंट की हेलो कक्षा में प्रवेश किया था।
 

इसरो का कहना है कि हेलो कक्षा में आदित्य एल-1 स्‍पेसक्राफ्ट को एल-1 पॉइंट के चारों ओर एक चक्कर पूरा करने में 178 दिन लगते हैं। इसरो ने बताया कि हेलो कक्षा में घूमने के दौरान आदित्‍य एल-1 कई फोर्सेज यानी बलों के संपर्क में आता है, जिससे इसके कक्षा से बाहर जाने की आशंका रहती है। 

एजेंसी ने बताया कि आदित्य-एल1 को इस कक्षा को बनाए रखने के लिए 22 फरवरी और 7 जून को दो बार उसके रूट में बदलाव किया गया। मंगलवार को तीसरी बार भी ऐसा किया गया ताकि स्‍पेसक्राफ्ट एल1 के चारों ओर दूसरे हेलो ऑर्बिट में सफर करता रहे। 
 

क्‍या है आदित्‍य एल1 का मकसद 

मिशन का मकसद सूर्य के फोटोस्‍फीयर, क्रोमोस्‍फीयर और कोरोना को स्‍टडी करना है। यह भारत की पहली स्‍पेस बेस्‍ड ऑब्‍जर्वेट्री है। सूर्य में होने वाली घटनाओं जैसे- कोरोनल मास इजेक्‍शन, सोलर फ्लेयर पर आदित्‍य की विशेष नजर है। 
 

क्‍या है सूर्य-पृथ्‍वी का एल1 पॉइंट 

एल1 पॉइंट पृथ्‍वी से 15 लाख किलोमीटर दूर है। यहां से सूर्य पर हमेशा नजर रखी जा सकती है। आदित्‍य स्‍पेसक्राफ्ट अपने साथ 7 साइंटिफ‍िक इंस्‍ट्रूमेंट्स लेकर गया है। ये सभी स्‍वेदशी हैं और भारत के विभ‍िन्‍न विभागों द्वारा तैयार किए गए हैं। इंस्‍ट्रूमेंट्स की मदद से सूर्य के अलग-अलग हिस्‍सों को स्‍टडी किया जा रहा है। 
 
 

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