पृथ्वी पर 1360 किलोग्राम का खतरा मंडरा रहा है! रिपोर्टों के
अनुसार, एक सैटेलाइट हमारे ग्रह के वायुमंडल में गिरने वाला है। इसका नाम आयोलस (Aeolus) है, जिसे यूरोपीय स्पेस एजेंसी (ESA) ने अगस्त 2018 में लॉन्च किया था। इस सैटेलाइट को अर्थ एक्स्प्लोरर सर्च मिशन के रूप में लॉन्च किया गया था। ESA के सामने सबसे बड़ी चुनौती सैटेलाइट को सुरक्षित तरीके से पृथ्वी पर गिराना है, ताकि जानमाल का कोई नुकसान ना हो। कैसे होगा यह सब, आइए जानते हैं।
खत्म हो रहा है ईंधन
आयोलस का ईंधन धीरे-धीरे खत्म हो रहा है। यह
स्पेसक्राफ्ट पृथ्वी से लगभग 320 किलोमीटर की ऊंचाई पर हमारे ग्रह का चक्कर लगा रहा है। पृथ्वी के करीब होने के कारण इसे अपनी कक्षा में बने रहने के लिए ज्यादा फ्यूल खर्च करना पड़ता है। इसके अलावा, सूर्य से निकले फ्लेयर्स और प्लाज्मा ने भी ग्रह को ज्यादा फ्यूल खर्च करने पर मजबूर किया है। यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के अनुसार, यह हवा के विपरीत चलने जैसा है।
बंद हो चुका है मिशन
आयोलस ने 30 अप्रैल को अपना कामकाज बंद कर दिया है। स्पेसक्राफ्ट के तमाम इंस्ट्रूमेंट्स को स्पेशल मोड में रखा गया है, ताकि आखिरी समय की गतिविधियां सही से हो सकें।
अब आगे क्या?
आने वाले दिनों में इस स्पेसक्राफ्ट को नीचे की ओर लाया जाएगा। इसकी ऊंचाई को 320 से 150 किलोमीटर तक किया जाएगा। उसके बाद स्पेसक्राफ्ट पृथ्वी की ओर गिरना शुरू कर देगा। अभी तक का अनुमान यही है कि यह सैटेलाइट धरती के वातावरण में प्रवेश करते ही जल जाएगा।
पृथ्वी के लिए खतरा कितना बड़ा?
यूरोपीय स्पेस एजेंसी ने बताया है कि आयोलस जब पृथ्वी पर दोबारा एंट्री करेगा तो किसी नुकसान की संभावना बहुत कम है। अमूमन जब इस तरह के स्पेसक्राफ्ट पृथ्वी पर गिरते हैं, तो कई टुकड़ों में बंटने के बाद समुद्री इलाकों में समा जाते हैं। हालांकि जिस क्षेत्र में स्पेसक्राफ्ट गिरते हैं, वहां का प्रशासन लोगों को अलर्ट करता है।