चंद्रमा की सतह और उसके वातावरण में होने वाली जटिल प्रक्रियाओं को जानने की होड़ तेज होती जा रही है। कई देश चंद्रमा के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने की कोशिश कर रहे हैं। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा तो चंद्रमा के लिए अपने दूसरे मानव मिशन को आगे बढ़ा रही है। इस बीच, भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ‘इसरो' (ISRO) ने एक दिलचस्प खोज का दावा किया है। इसरो ने कहा है कि उसके चंद्रयान -2 ऑर्बिटर को चंद्रमा के ऊपरी वायुमंडल में एक महत्वपूर्ण गैस मिली है। इसरो ने बताया है कि चंद्रयान के ‘एटमॉस्फिएरिक कम्पोजिशन एक्सप्लोरर-2' (CHACE-2) उपकरण ने चंद्र एक्सोस्फीयर (बाहरी मंडल) में ‘आर्गन-40' गैस का पता लगाया है। यह चंद्रमा के वातावरण का सबसे बाहरी क्षेत्र है, जहां परमाणु और अणु शायद ही कभी एक-दूसरे से टकराते हैं।
इसरो को उम्मीद है कि उसका ऑब्जर्वेशन चंद्रमा के आसपास और बाहरी प्रजातियों को समझने में मदद करेगा।
चंद्रमा की सतह के नीचे रेडियोजेनिक गतिविधियों को समझने में भी यह ऑब्जर्वेशन मदद कर सकता है।
इसरो के
मुताबिक, यह खोज इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि ‘आर्गन-40' (Ar-40) एक उत्कृष्ट गैस है, जो इसे सबसे स्थिर गैसों में से एक बनाती है और चंद्रमा की सतह की प्रक्रिया को समझने के लिए प्रमुख ट्रेसर के रूप में काम करती है। इसरो के अनुसार, ‘Ar-40' गैस चंद्रमा की सतह के नीचे मौजूद पोटेशियम-40 (K-40) के रेडियोएक्टिव विघटन से पैदा होती है।
यह खोज इसलिए भी अहम है, क्योंकि अपोलो -17 और LADEE मिशनों ने चंद्रमा के बाहरी इलाके में Ar-40 गैस की मौजूदगी का पता लगाया है, लेकिन वह खोज चंद्रमा के निकट-भूमध्यरेखीय क्षेत्र तक ही सीमित थी। पहली बार, चंद्रयान के ‘एटमॉस्फिएरिक कम्पोजिशन एक्सप्लोरर-2' (CHACE-2) उपकरण ने लगातार -60 से +60 डिग्री की अक्षांश सीमा में Ar-40 गैसों को ऑब्जर्व किया है। यह
स्टडी जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स जर्नल्स में प्रकाशित हुई है।
चंद्रयान-2 मिशन इसरो के लिए इसलिए भी अहम है, क्योंकि साल 2019 में सॉफ्ट लैंडिंग नहीं होने की वजह से इसके लैंडर और रोवर खत्म हो गए थे। इसके ऑर्बिटर में शामिल CHACE-2 उपकरण को कोई नुकसान नहीं हुआ और उसने चंद्रमा पर अपने प्रयोगों को जारी रखा।
इस साल के अंत में इसरो ‘चंद्रयान -3' मिशन शुरू करने की योजना बना रहा है, ताकि एक बार फिर से चंद्रमा की सतह पर उतरने की कोशिश की जा सके।