Aditya L1 Mission Launched : स्पेस साइंस की दुनिया में भारत ने आज एक और इतिहास रच दिया। भारतीय स्पेस एजेंसी
इसरो (ISRO) का सौर मिशन (India Solar Mission) आदित्य एल-1 (Aditya L1) सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में लॉन्च हो गया। आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्पेसपोर्ट से सुबह 11 बजकर 50 मिनट पर मिशन ने उड़ान भरी। लाइव टेलिकास्ट के दौरान इसरो ने मिशन के सफल लॉन्च की पुष्टि कर दी है। पीएसएलवी-सी57 रॉकेट के जरिए आदित्य एल-1 स्पेसक्राफ्ट ने उड़ान भरी है, जो 120 दिनों के लंबे सफर पर निकल गया है।
करीब 4 महीने बाद यह पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर दूर सूर्य-पृथ्वी के लैग्रेंज बिंदु पर पहुंचेगा, जिसे L1 पॉइंट कहा जाता है। यही वह जगह होगी, जहां से भारत की पहली स्पेस बेस्ड सोलर ऑब्जर्वेट्री हमारे सूर्य को मॉनिटर करेगी और उसकी हर हरकत को हम तक पहुंचाएगी। खास यह है कि 120 दिनों में आदित्य एल-1 स्पेसक्राफ्ट जो दूरी तय करेगा, वह पृथ्वी और सूर्य के बीच दूरी का सिर्फ 1 फीसदी है। लेकिन वहां L1 पॉइंट ऐसी जगह है, जहां से सूर्य पर हमेशा नजर रखी जा सकेगी।
शनिवार का दिन भारत के लिए एक और कामयाबी लेकर आया। चंद्रयान-3 मिशन के बाद इसरो का सौर मिशन लॉन्च हो गया। सुबह से ही लोग मिशन के लॉन्च होने का इंतजार कर रहे थे। इसरो के यूट्यूब चैनल समेत तमाम प्लेटफॉर्म्स पर सुबह 11 बजकर 20 मिनट से लाइव टेलिकास्ट शुरू कर दिया गया था।
उल्टी गिनती शुरू होते ही लोगों की धड़कनें बढ़ गईं। पीएसएलवी-सी57 रॉकेट ने जैसे ही उड़ान भरी, श्रीहरिकोटा समेत देशभर में इस लॉन्च को देख रहे लोग तालियां बजाने लगे। रॉकेट का लिफ्ट ऑफ नॉर्मल था, जो आसमान को चीरते हुए आगे बढ़ गया।
यह भारत का पहला सौर मिशन है, जिसका मकसद सूर्य के कोरोना (सूर्य की सबसे बाहरी परत) का ऑब्जर्वेशन करना है। स्पेसक्राफ्ट अपने साथ 7 पेलोड लेकर गया है। सभी पेलोड अलग-अलग वेव बैंड में फोटोस्फेयर (प्रकाशमंडल), क्रोमोस्फेयर (सूर्य की दिखाई देने वाली सतह से ठीक ऊपरी सतह) और सूर्य की सबसे बाहरी परत (कोरोना) का ऑब्जर्वेशन करने में मदद करेंगे।
आदित्य-एल1 मिशन पूरी तरह से स्वदेशी है। इसे तैयार करने में कई राष्ट्रीय संस्थानों की भागीदारी है। पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, इसका प्राइमरी इंस्ट्रूमेंट ‘विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ' (वीईएलसी) है। जब आदित्य ऑब्जर्वेट्री अपना काम शुरू कर देगी, तब वीईएलसी, इसरो के ग्राउंड स्टेशन को रोजाना 1440 तस्वीरें भेजेगा। इन तस्वीरों को परखकर वैज्ञानिक यह जान पाएंगे कि सूर्य में किस तरह की हलचलें हो रही हैं।