हमारे सौर मंडल के सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति (Jupiter) पर जूनो स्पेसक्राफ्ट (Juno spacecraft) बारीकी से नजर रखता है। इसे साल 2011 में लॉन्च किया गया था और नासा (Nasa) की जेट प्रोपल्शन लेबोरटरी इसे ऑपरेट करती है। यह स्पेसक्राफ्ट 2016 में मंगल ग्रह की कक्षा में पहुंचा था और तब से लगातार इस ग्रह की निगरानी कर रहा है। अपने हालिया फ्लाईबाई के दौरान जूनो ने बृहस्पति ग्रह की सतह में होने वाली एक बड़े डेवलपमेंट का पता लगाया है। स्पेसक्राफ्ट ने बृहस्पति ग्रह के साथ अपने 43वें क्लोज एनकाउंटर के दौरान ग्रह के उत्तरी ध्रुव के पास बड़े पैमाने पर तूफानों को कैप्चर किया।
स्पेसक्राफ्ट ने अपने जूनोकैम (JunoCam) का इस्तेमाल करते हुए, भंवर जैसे तूफान की तरह सर्पिल हवा के पैटर्न को कैप्चर किया। ये तूफान पृथ्वी पर आने वाले तूफानों से काफी बड़े मालूम पड़ते हैं।
रिपोर्टों के अनुसार, नासा ने बताया है कि बृहस्पति ग्रह पर ये तूफान 50 किलोमीटर तक ऊंचे और 100 किलोमीटर के दायरे में हो सकते हैं। वैज्ञानिक यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि बृहस्पति ग्रह पर ये तूफान कैसे आते हैं।
जूनोकैम से ली गईं इन तस्वीरों में दिख रहे तूफान और अन्य वायुमंडलीय घटनाओं को कैटिगराइज करने के लिए नासा ने सिटिजन साइंटिस्टों से भी आगे आने को कहा है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा है कि ऐसी घटनाओं और इमेजेस को परखने के लिए किसी ट्रेनिंग या सॉफ्टवेयर की जरूरत नहीं है। सिटिजन साइंटिस्ट अपने लैपटॉप या मोबाइल फोन की मदद से तस्वीरों को टटोलकर नासा की मदद कर सकते हैं।
नासा ने कहा है कि यह पता लगाना कि वे कैसे बनते हैं, बृहस्पति के वायुमंडल के साथ-साथ फ्लूइड डायनैमिक्स और क्लाउड कैमिस्ट्री को समझने के लिए महत्वपूर्ण है। वैज्ञानिकों की दिलचस्पी इन तूफानों के आकार और रंगों को समझने में है। वैज्ञानिक उन चक्रवातों से हैरान हैं, जो उत्तरी गोलार्ध में काउंटर-क्लॉकवाइज और दक्षिणी गोलार्ध में क्लॉकवाइज घूमते हैं साथ ही अलग तरह का आकार लेते हैं और रंगों में ढल जाते हैं।
वैज्ञानिकों के लिए जितना दिलचस्प बृहस्पति ग्रह है, उतनी ही अहम है इसका चंद्रमा यूरोपा। यूरोपा, पृथ्वी के चंद्रमा से थोड़ा छोटा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इसकी जमी हुई सतह के नीचे एक महासागर छिपा है। अब तक मिले सबूत बताते हैं कि यह खगोलीय पिंड गर्म, नमकीन और जीवन को सक्षम बनाने वाले तत्वों से समृद्ध हो सकता है। यह पहले ही पता चल चुका है कि यूरोपा, ऑक्सीजन पैदा करता है, हालांकि समस्या यह है कि इसकी सतह पर बर्फ की मोटी चादर ऑक्सीजन को यूरोपा के समुद्र तक पहुंचने से रोकती है।