वैज्ञानिकों का मानना रहा है कि मंगल कभी पानी से भरपूर था। प्राचीन नदी घाटियों, बाढ़ चैनलों और पानी की मौजूदगी में बनने वाले खनिजों के सबूत इस ओर इशारा करते हैं कि वहां कभी तरल पानी बहता था। लेकिन यह लाल ग्रह अपनी मौजूदा शुष्क स्थिति तक कैसे पहुंचा, इस पर अभी भी बहस जारी है। हाल ही में एक शोध में दावा किया गया था कि मंगल की सतह के नीचे भारी मात्रा में पानी जमा हो सकता है, लेकिन अब इस दावे को चुनौती दी गई है।
PNAS (Proceedings of the National Academy of Sciences) में पब्लिश हुई एक नई
स्टडी बताती है कि यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो बोल्डर के सीनियर रिसर्च साइंटिस्ट ब्रूस जाकोस्की ने इस विचार पर
सवाल उठाए हैं कि मंगल की मिड-क्रस्ट (सतह के नीचे की परत) पानी से भरी हो सकती है। इससे पहले, कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के वॉन राइट और उनकी टीम ने NASA के InSight मिशन के डेटा का विश्लेषण करके बताया था कि मंगल की गहराई में मौजूद दरारों वाली आग्नेय चट्टानें पानी जमा करने की क्षमता रखती हैं।
हालांकि, जाकोस्की का तर्क है कि जिस भूकंपीय डेटा के आधार पर यह दावा किया गया था, उसकी व्याख्या अलग तरह से भी की जा सकती है। उनके मुताबिक, मंगल की क्रस्ट में मौजूद छिद्रों में जरूरी नहीं कि तरल पानी ही भरा हो। उन्होंने कहा कि मंगल की सतह के नीचे बर्फ या खाली जगह भी हो सकती है, जिससे पानी की सटीक मात्रा का अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाता है।
राइट की स्टडी में अनुमान लगाया गया था कि अगर मंगल की क्रस्ट में मौजूद सभी छिद्र पानी से भरे हों, तो यह पानी ग्रह की सतह पर 1 से 2 किलोमीटर की गहराई तक फैल सकता है। लेकिन जाकोस्की के मुताबिक, यह अनुमान सही नहीं हो सकता क्योंकि इन छिद्रों में ठोस बर्फ हो सकती है या फिर ये पूरी तरह खाली भी हो सकते हैं। इसका मतलब है कि मंगल की सतह के नीचे पानी की मात्रा शून्य से लेकर 2 किलोमीटर तक कुछ भी हो सकती है, जिससे स्थिति पहले से भी ज्यादा अनिश्चित हो गई है।
फिलहाल यह पूरी तरह साफ नहीं है कि मंगल की क्रस्ट में वाकई पानी मौजूद है या नहीं। डेटा इसकी संभावनाओं को नकारता भी नहीं है, लेकिन पुष्टि भी नहीं करता। जाकोस्की के अनुसार, इस रहस्य को सुलझाने के लिए अगली स्पेस मिशनों की ज्यादा सटीक माप जरूरी होगी।