पृथ्वी से बाहर जीवन की बात आती है, तो वैज्ञानिकों की निगाहें मंगल ग्रह पर ठिठक जाती हैं। क्या मंगल ग्रह पर कभी जीवन मौजूद रहा होगा। वैज्ञानिकों की एक टीम का कहना है कि ऐसी ‘बहुत संभावना है' कि मंगल ग्रह की सतह के नीचे किसी प्रकार का जीवन मौजूद था। यह भी संभव है कि आज भी मंगल ग्रह के रोगाणु (microbes) अंडरग्राउंड रह सकते हैं। इन्हें ‘एलियंस बग' कहा जा सकता है। फ्रांस के एक इंस्टिट्यूट में जीवविज्ञानी बोरिस सॉटरे ने यह भी कहा है कि अगर मंगल ग्रह पर जीवन रहा भी होगा, तो उसमें विकसित होने वाले जीवों ने अपने विनाश के ‘बीज' साथ रखे होंगे।
यानी मंगल ग्रह पर जो जीवन पनपा, वह उस ग्रह पर पनपने वाले दूसरे जीवन की वजह से बर्बाद हो गया। डेली स्टार की
रिपोर्ट के अनुसार, मंगल ग्रह के शुरुआती इतिहास में वहां पनपने वाले माइक्रोब, मीथेन-उत्पादक थे। वह उस ग्रह को डीप-फ्रीज कर सकते थे। फ्रांसीसी वैज्ञानिकों की टीम के मुताबिक, मंगल ग्रह के शुरुआती समय में उसके सबसर्फेस में जीवन की संभावना बहुत अधिक थी। जीवविज्ञानी बोरिस ने बताया कि उनकी टीम ने एक मॉडल तैयार किया गया था, जो बताता है कि मंगल ग्रह पर सूक्ष्म जीवों की आबादी का प्रभाव कैसा था।
उनके मुताबिक, हमने मंगल ग्रह की रहने की क्षमता का मूल्यांकन किया। उन्होंने बताया कि हमें आश्चर्यजनक परिणाम मिले। उन्होंने कहा है कि पृथ्वी पर तो जीवन ने इस ग्रह की जलवायु को स्थिर करने की कोशिश की है, लेकिन मंगल पर मीथेन पैदा करने वाले बैक्टीरिया ने ठीक उल्टा किया होगा। उन्होंने मंगल ग्रह को हिमयुग वाली स्थिति में ला दिया होगा।
उन्होंने कहा कि पृथ्वी की जलवायु पर जीवन का प्रभाव आकाशगंगा में यूनीक हो सकता है। और हो सकता है कि ज्यादातर ग्रहों को वहां पनपने वाले जीवन ने ही रहने के लिए नामुमकिन बना दिया हो। उन्होंने बताया कि मीथेन पैदा करने वाले बैक्टीरिया की वजह से मंगल ग्रह की जलवायु माइनस 20 से 40 डिग्री तक ठंडा हो गई। बोरिस इसे अन्य ग्रहों पर भी लागू करते हैं, जबकि सिर्फ पृथ्वी इसका अपवाद हो सकती है।