कई रिपोर्टों में हम यह पढ़ चुके हैं कि सूर्य में तमाम हलचलें देखने को मिल रही हैं। इनके चलते सोलर फ्लेयर्स और कोरोनल मास इजेक्शन (CME) आदि घटनाएं हो रही हैं। दरअसल, हमारा सूर्य अपने 11 साल के चक्र से गुजर रहा है। यह बहुत अधिक एक्टिव फेज में है। हाल ही में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (Nasa) ने एक चेतावनी में कहा था कि विशाल सौर विस्फोटों के बार-बार होने की संभावना है। यह विस्फोट और इनमें बढ़ोतरी साल 2025 तक जारी रहेगी। इसकी वजह से सैटेलाइट्स और अंतरिक्ष यात्रियों पर असर पड़ सकता है। यह सोलर साइकल 25 है, जिसकी शुरुआत दिसंबर 2019 से लगाई गई है।
नासा का
कहना है कि साल 2025 में हम सूर्य के 11 साल के सौर चक्र के पीक पर पहुंचेंगे, जिसे सोलर मैक्सिमम भी कहा जाता है। इस वजह से कोरोनल मास इजेक्शन (CME) और सोलर फ्लेयर्स की संभावना बहुत ज्यादा बढ़ जाएगी। जानकारों के अनुसार, हर 11 साल में एक नया सौर चक्र शुरू होता है। इस अवधि के दौरान सूर्य आग के एक शांत गोले से सक्रिय और तूफानी गोले में बदल देता है और फिर शांत हो जाता है। इस दौरान सूर्य से पृथ्वी की ओर कोरोनल मास इजेक्शन और सोलर फ्लेयर्स उत्सर्जित होते हैं। इसकी वजह से पृथ्वी पर भू-चुंबकीय तूफान आते हैं और सैटेलाइट्स व पृथ्वी पर मौजूद पावर ग्रिड पर असर पड़ सकता है।
क्या हैं CME
CME, सौर प्लाज्मा के बड़े बादल होते हैं। सौर विस्फोट के बाद ये बादल अंतरिक्ष में सूर्य के मैग्नेटिक फील्ड में फैल जाते हैं। अंतरिक्ष में घूमने की वजह से इनका विस्तार होता है और अक्सर यह कई लाख मील की दूरी तक पहुंच जाते हैं। कई बार तो यह ग्रहों के मैग्नेटिक फील्ड से टकरा जाते हैं। जब इनकी दिशा की पृथ्वी की ओर होती है, तो यह जियो मैग्नेटिक यानी भू-चुंबकीय गड़बड़ी पैदा कर सकते हैं। इनकी वजह से सैटेलाइट्स में शॉर्ट सर्किट हो सकता है और पावर ग्रिड पर असर पड़ सकता है। इनका असर ज्यादा होने पर ये पृथ्वी की कक्षा में मौजूद अंतरिक्ष यात्रियों को भी खतरे में डाल सकते हैं।
वहीं, जब सूर्य की चुंबकीय ऊर्जा रिलीज होती है, तो उससे निकलने वाली रोशनी और पार्टिकल्स से सौर फ्लेयर्स बनते हैं। हमारे सौर मंडल में ये फ्लेयर्स अबतक के सबसे शक्तिशाली विस्फोट हैं, जिनमें अरबों हाइड्रोजन बमों की तुलना में ऊर्जा रिलीज होती है।
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