दुनियाभर के वैज्ञानिक और स्पेस एजेंसियां पृथ्वी से बाहर अपने मिशन भेज रही हैं। वह जानना चाहती हैं कि क्या पृथ्वी के बाहर जीवन मुमकिन है। अगर है, तो कहां? वैज्ञानिकों ने कई वर्षों से ब्रह्मांड को टटोला है। वह तलाश रहे हैं कि धरती के अलावा और किस ग्रह पर जीवन पनप सकता है। एक्सोप्लैनेट पर वैज्ञानिकों की खास नजर है। एक्सोप्लैनेट उन ग्रहों को कहा जाता है जो हमारे सूर्य के अलावा किसी अन्य तारे की परिक्रमा करते हैं। वैज्ञानिक जैसे-जैसे सुदूर ब्रह्मांड में अपने मिशन भेजते हैं, उन्हें ऐसे उपकरणों की जरूरत होती है, जो कॉम्पैक्ट हो, सटीक काम करे और विश्लेषण हासिल करने में मददगार हो। मैरीलैंड यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स की एक टीम ने ऐसा ही एक उपकरण तैयार किया है।
मीडिया
रिपोर्टों के अनुसार, टीम ने नासा की जरूरतों के हिसाब से एक डिवाइस बनाई है। यह एक छोटी लेजर डिवाइस है और पुरानी डिवाइस के मुकाबले ज्यादा संसाधन कुशल (resource efficient) है। नई डिवाइस से जुड़ा
रिसर्च पेपर सोमवार को जरनल नेचर एस्ट्रोनॉमी में पब्लिश हुआ है।
बताया जाता है कि डिवाइस का वजन सिर्फ 17 पाउंड यानी करीब 7.7 किलो है। जीवन के संकतों का पता लगाने के लिए बनाई गई यह डिवाइस असल में दो जरूरी डिवाइसेज का एक छोटा वर्जन है। यह एक अल्ट्रावॉयलेट लेजर है, जो दूसरे ग्रहों से जुटाए जाने वाले सैंपलों से छोटी मात्रा में सैंपल निकालता है। इसमें एक ऑर्बिट्रैप एनालाइजर भी लगा है, जो मटीरियल के केमिस्ट्री से जुड़ा हाई-रेजॉलूशन डेटा उपलब्ध कराता है।
स्टडी के प्रमुख लेखक प्रोफेसर रिकार्डो अरेवालो के हवाले से रिपोर्ट में लिखा गया है कि ऑर्बिट्रैप को मूल रूप से
कमर्शल इस्तेमाल के लिए बनाया गया था। ये एनालाइजर लैब में काफी यूज होते हैं। इसका प्रोटोटाइप तैयार करने में रिसर्चर्स को 8 साल लग गए। वैज्ञानिकों ने ऑर्बिट्रैप को छोटा किया। इसे पृथ्वी से बाहर भेजे जाने के अनुकूल बनाया। यह कम बिजली खपत करता है, जो पृथ्वी से बाहर भेजी जाने वाले डिवाइसेज के लिए अहम है।
यह डिवाइस भविष्य के मिशनों के लिए मददगार हो सकती है। खासतौर पर जीवन के संकेतों का पता लगाने वाले मिशन, चंद्रमा की सतह की खोज से जुड़े मिशन आदि। हो सकता है नासा के आर्टिमिस मिशन (Artemis Mission) में इस डिवाइस का इस्तेमाल किया जाए।