एक रिपोर्ट से पता चला है कि कॉक्स मीडिया ग्रुप (CMG) "एक्टिव लिसनिंग" सॉफ्टवेयर को बढ़ावा दे रहा है, जो डिवाइस माइक्रोफोन द्वारा कैप्चर की गई बातचीत के आधार पर विज्ञापनों को टार्गेट करता है। यह खबर लोगों के उस शक को यकीन में बदल देता है कि हमारे स्मार्टफोन, टैबलेट या लैपटॉप जैसे डिवाइस हमारी बातों को दिन-रात सुन रहे हैं। शायद आपके साथ भी ऐसा हुआ होगा कि आपने कुछ चीजों के नाम बोले हों और आपको आपके डिवाइस में मौजूद ऐप्स द्वारा उसी से संबंधित नोटिफिकेशन्स आए हों। यही कारण है कि लंबे समय से यह चर्चा का विषय बना हुआ है कि हमारे डिवाइस हमारी बातें सुनते हैं। लेटेस्ट रिपोर्ट कहीं न कहीं इस बात की पुष्टि करने का दावा करती है। कथित तौर पर CMG के साझेदारों में Facebook, Google और Amazon शामिल हैं।
टेक न्यूज पर फोकस करने वाली एक वेबसाइट, 404 Media ने
दावा किया (via
The Guardian) है कि CMG एक्टिव लिसनिंग सॉफ्टवेयर के जरिए डिवाइस माइक्रोफोन द्वारा कैप्चर की गई बातचीत को स्टोर कर रही है और उसके आधार पर विज्ञापनों को टार्गेट कर रही है। पब्लिकेशन ने अपने दावे को साबित करने के लिए उसके पास कॉक्स मीडिया ग्रुप से हासिल किए गए पिच डेक का हवाला दिया है। इस पिच डेक से पता चला है कि कंपनी अपने "एक्टिव लिसनिंग" सॉफ्टवेयर का प्रचार कर रही है, जो लोगों को उनके डिवाइस माइक्रोफोन के पास क्या कहते हैं, उसके आधार पर विज्ञापनों को लक्षित करता है।
हालांकि, इस प्रेजेंटेशन में इस बात की जानकारी नहीं है कि कैप्चर किया जा रहा यूजर्स का वॉयस डेटा स्मार्ट टीवी, स्मार्ट स्पीकर या स्मार्टफोन से आता है या नहीं, लेकिन जिस स्लाइड में कंपनी the power of voice (and our devices' microphones) के बारे में समझा रही है, उसमें कथित तौर पर लोगों की एक तस्वीर है, जो अपने फोन को देख रहे हैं।
बता दें कि 404 Media ने पिछले साल दिसंबर में ही CMG के इस सॉफ्टवेयर की
जानकारी दे दी थी और तब CMG ने इस प्रोसेस को कथित तौर पर वॉयस डेटा बताया था। रिपोर्ट आगे बताती है कि सीएमजी के डेक में फेसबुक, गूगल और अमेजन को इसके पार्टनर के रूप में लिस्ट किया गया है। जबकि पार्टनर होने का मतलब यह बिल्कुल नहीं होता कि वे सभी CMG की इस टेक्नोलॉजी को इस्तेमाल करते हैं, इन सभी कंपनियों ने खुद भी किसी भी प्रकार की भागेदारी को नकार दिया है।
रिपोर्ट बताती है कि Amazon ने अपनी ओर से कहा है कि उसने कभी भी सीएमजी के साथ काम नहीं किया है और Google ने 404 रिपोर्ट के बाद सीएमजी को अपने पार्टनर्स प्रोग्राम से हटा दिया था। फेसबुक की मूल कंपनी Meta ने कहा कि वह जांच कर रही है कि क्या सीएमजी ने उसकी सर्विस टर्म्स का उल्लंघन किया है।
भले ही बड़े टेक दिग्गज इस तरह की सर्विस का इस्तेमाल न कर रहे हों, लेकिन इससे इतना तो तय है कि टेक्नोलॉजी की दुनिया में लोगों की प्राइवेसी की कोई अहमियत नहीं है। यदि किसी बड़ी फर्म द्वारा खुले-आम यूजर्स की बातचीत को कैप्चर करने को वॉयस डेटा का नाम दिया जा सकता है, तो निश्चित तौर पर हमारी निजता खतरे में हैं।