सुप्रीम कोर्ट ने इंटरनेट से आपत्तिजनक कंटेंट को हटाने पर सरकार से मांगा जवाब

इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को छह सप्ताह की समयसीमा दी है। इस मामले की अगली सुनवाई 3 नवंबर को होगी

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Written by Richa Sharma, Edited by आकाश आनंद, अपडेटेड: 20 सितंबर 2022 16:31 IST
ख़ास बातें
  • इस मामले की अगली सुनवाई 3 नवंबर को होगी
  • बेंच ने सर्विस प्रोवाइडर्स से भी स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है
  • सुप्रीम कोर्ट ने इंटरनेट पर आपत्तिजनक कंटेंट को लेकर चिंता जताई थी

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को छह सप्ताह की समयसीमा दी है

सुप्रीम कोर्ट ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी, रेप वीडियो और इमेजेज को फैलने से रोकने के लिए इंटरनेट इंटरमीडियरीज और केंद्र सरकार की ओर से उठाए गए कदमों पर रिपोर्ट मांगी है। इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को छह सप्ताह की समयसीमा दी है। इस मामले की अगली सुनवाई 3 नवंबर को होगी। 

यह निर्देश दो जजों की बेंच ने दिया है। सरकार की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी सुनवाई में उपस्थित थी। चाइल्ड पोर्नोग्राफी और रेप के वीडियो और इमेजेज के फैलने पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने इंटरनेट इंटरमीडियरीज और सरकार पर सवाल उठाया है और इस बारे में रिपोर्ट मांगी है। एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने जस्टिस बी आर गवई और सी टी रविकुमार की बेंच को आश्वासन दिया कि इस बारे में स्टेटस रिपोर्ट तैयार है। बेंच ने सर्विस प्रोवाइडर्स से भी स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है। भाटी ने कहा कि इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (इंटरमीडियरी गाइडलाइंस एंड डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड) रूल्स को नोटिफाई कर दिया गया है।

लगभग चार वर्ष पहले सुप्रीम कोर्ट ने इंटरनेट पर आपत्तिजनक कंटेंट को लेकर चिंता जताई थी। कोर्ट ने कहा था कि सरकार ऐसे वीडियो और फोटो को हटाने के लिए गाइडलाइंस या स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर बनाना सकती है। केंद्र सरकार और Google, Microsoft और Facebook जैसी बड़ी इंटरनेट कंपनियों ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी, रेप और आपत्तिजनक मैटीरियल को हटाने की जरूरत पर सहमति जताई थी।

विभिन्न राज्यों में एकतरफा तरीके से इंटरनेट को बंद किए जाने पर भी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने मिनिस्ट्री ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (MeitY) से जवाब देने को कहा था। इस बारे में दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने मिनिस्ट्री से इसका कारण पूछा था। लगभग दो वर्ष पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा था कि इंटरनेट सर्विसेज को बिना स्पष्ट कारण बताए बंद करना गैर कानूनी है। कुछ राज्य सरकारें ऐसे क्षेत्रों में नियमित तौर पर इंटरनेट को बंद कर देती हैं जहां परीक्षाएं हो रही हैं। इसका कारण परीक्षाओं में धोखाधड़ी को रोकना होता है।  याचिका में आरोप लगाया गया था कि अरुणाचल प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में इंटरनेट सर्विसेज को बंद कर किया जाता है। कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि क्या इस समस्या से निपटने के लिए कोई प्रोटोकॉल मौजूद है। कोर्ट का कहना था कि वह इस मामले में इंटरनेट सर्विसेज बंद करने वाले राज्यों के बजाय मिनिस्ट्री को नोटिस जारी कर रहा है।   
 
 

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ये भी पढ़े: Content, Google, Court, Government, Reports, Facebook, pornography, Guidelines
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