Google ने अपने जाने-माने अंदाज़ में सोमवार को फिल्म निर्माता Dadasaheb Phalke को डूडल के ज़रिए याद किया है। दादासाहब फाल्के को 'भारतीय सिनेमा के जनक' के तौर पर जाना जाता है। Dadasaheb Phalke का जन्म 30 अप्रैल, 1870 को महाराष्ट्र के नासिक शहर में हुआ था। उनका असली नाम धुंडीराज गोविंद फाल्के था। उनके पिता शास्त्री फाल्के संस्कृत के विद्वान थे और शानदार जिंदगी की तलाश के लिए उनका परिवार नासिक से मुंबई पहुंचा। बचपन से ही उनका रुझान कला की ओर रहा और साल 1855 में उन्होंने 'जे.जे.कॉलेज ऑफ आर्ट्स' में दाखिला लिया। Google ने आज ऐसे ही हुनरमंद फिल्म निर्माता और भारती सिनेमा के सबसे पुराने मार्गदर्शक के योगदानों को याद किया है।
Google डूडल द्वारा दर्शाए गए Dadasaheb Phalke ने नाटक कंपनी में चित्रकार और पुरात्तव विभाग में फोटोग्राफर के तौर पर काम भी किया। लेकिन जब इन सबमें उनका मन नहीं लगा तो उन्होंने पूरे जोश-जुनून के साथ फिल्मकार बनने का फैसला लिया और दोस्त से रुपये लेकर लंदन चले आए।
Dadasaheb Phalke की सोमवार को 148वीं जयंती है। दादासाहब एक जाने-माने प्रोड्यूसर, डायरेक्टर और स्क्रीनराइटर थे। दादा ने अपने 19 साल लंबे करियर में 95 फिल्में और 27 लघु फिल्में बनाईं। दादा साहब फाल्के ने 'राजा हरिश्चंद्र' से सिने जगत में नींव रखी, जिसे भारत की पहली फुल-लेंथ फीचर फिल्म कहा जाता है। इसके अलावा उन्होंने 'मोहिनी भष्मासुर', 'सत्यवान सावित्री' और 'कालिया मर्दन' जैसी यादगार फिल्मों में काम किया।
लंदन में दो हफ्ते बिता फिल्म की बारिकियां सीखने के बाद वह मुंबई लौटे। यहां Google डूडल के आज सितारे ने फाल्के फिल्म कंपनी की स्थापना की और अपने बैनर तले 'राजा हरिश्चंद्र' नामक फिल्म बनाने का निर्णय लिया। उन्हें पहले तो फिल्म के लिए फाइनेंसर नहीं मिला फिर दादासाहेब चाहते थे कि उनकी फिल्म में मुख्य किरदार कोई महिला निभाए, लेकिन किसी ने भी हामी नहीं भरी, क्योंकि उस दौर में महिलाओं का काम करना अच्छा नहीं माना जाता था। आखिरकार 3 मई, 1913 को मुंबई के कोरनेशन सिनेमा में किसी भारतीय फिल्मकार द्वारा बनाई गई पहली फिल्म 'राजा हरिश्चिंद्र' का प्रदर्शन हुआ। 40 मिनट की यह फिल्म टिकट खिड़की पर सुपरहिट साबित हुई।
Google डूडल की बात करें तो 'Dadasaheb Phalke' पर बने doodle को कलाकार अलीशा नान्द्रा ने तैयार किया है। Google डूडल में दादासाहब फाल्के को एक फिल्म रील के साथ दिखाया गया है। लिखा गया है कि उन्होंने भारतीय सिनेमा के इतिहास की सबसे यादगार फिल्में निर्देशित की थीं।' Google की ब्लॉग पोस्ट में आगे ज़िक्र है, 'पेंटर, ड्राफ्ट्समैन, थिएट्रिकल सेट डिज़ाइनर के तौर पर अपना भाग्य आजमाने के बाद उन्हें एलिस गाय की साइलेंट फिल्म 'द लाइफ ऑफ क्राइस्ट' में मौका मिला। देखा जाए तो भारतीय संस्कृति को सिल्वर स्क्रीन पर दिखाने का श्रेय Dadasaheb Phalke साहब को ही जाता है।'
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