Bitcoin माइनिंग के लिए ‘कोयले की राख’ से बिजली पैदा कर रही यह अमेरिकी कंपनी

कंपनी का मकसद अमेरिका के नेशनल एनर्जी नेटवर्क को नुकसान ना पहुंचाते हुए एक बायप्रोडक्‍ट को इस्‍तेमाल करना है।

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प्रेम त्रिपाठी, अपडेटेड: 23 मार्च 2022 15:00 IST
ख़ास बातें
  • स्ट्रॉन्गहोल्ड डिजिटल माइनिंग नाम की कंपनी ने यह तरीका खोजा है
  • कंपनी दशकों पुराने बिजली संयंत्रों द्वारा छोड़ी गई कोयले की राख जुटाती है
  • इसे पेंसिल्वेनिया में पास की ही एक खदान से इकट्ठा किया जाता है

कंपनी दशकों पुराने बिजली संयंत्रों द्वारा छोड़ी गई कोयले की राख का इस्‍तेमाल करके बिजली बनाती है।

क्रिप्‍टोकरेंसी (cryptocurrency) माइनिंग में बेतहाशा बिजली खर्च होती है, जो दुनियाभर की सरकारों के लिए चिंता का बड़ा विषय है। हाल के महीनों में कई देशों को इस वजह से बिजली संकट से जूझना पड़ा। इसके बाद वहां की सरकारों ने क्रिप्‍टो माइनिंग को लेकर सख्‍त फैसले लिए। जॉर्जिया के सवेनेती शहर के लोगों को पवित्र शपथ दिलाई गई, ताकि वो क्रिप्‍टो माइनिंग ना करें। रूस के इरकुत्स्क रीजन और कजाकिस्‍तान में क्रिप्‍टो माइनिंग करने वालों पर कार्रवाई हुई। हालांकि कुछ उदाहरण ऐसे भी हैं, जो क्रिप्‍टो माइनिंग के दूसरे विकल्‍प इस्‍तेमाल कर रहे हैं। 

अमेरिका के पेंसिल्वेनिया में स्थित क्रिप्टोकरेंसी माइनिंग कंपनी ‘स्ट्रॉन्गहोल्ड डिजिटल माइनिंग' अपने सैकड़ों सुपर कंप्यूटरों को बिजली देने के लिए कोयले के कचरे (कोल वेस्‍ट) का इस्तेमाल करती है। कंपनी का मकसद अमेरिका के नेशनल एनर्जी नेटवर्क को नुकसान ना पहुंचाते हुए एक बायप्रोडक्‍ट को इस्‍तेमाल करना है। 

cryptopotato ने रिपोर्ट में बताया है कि स्ट्रॉन्गहोल्ड डिजिटल माइनिंग ने अपने संचालन के लिए बिजली पैदा करने का वैकल्पिक तरीका खोजा है। कंपनी दशकों पुराने बिजली संयंत्रों द्वारा छोड़ी गई कोयले की राख का इस्‍तेमाल करके बिजली बनाती है। इसे पेंसिल्वेनिया में पास की ही एक खदान से इकट्ठा किया जाता है। प्रोसेस होने के बाद राख को बायप्रोडक्ट बॉयलर बिल्डिंग में पहुंचाया जाता है, जहां इससे बिजली पैदा की जाती है और वह बिजली सैकड़ों सुपर कंप्यूटरों तक पहुंचकर क्रिप्‍टोकरेंसी माइनिंग करती है। 

कंपनी की इस कोशिश से कोयले की राख को पेंसिल्वेनिया की आबादी तक पहुंचने से रोकने में भी मदद मिली है। गौरतलब है कि अगर कोयले की राख को आइसोलेट नहीं किया गया, तो यह ग्राउंड वॉटर में मिल सकती है और प्रदूषण बढ़ा सकती है। कोयले की राख में हैवी मेटल्‍स होते हैं, जिन्हें कार्सिनोजेनिक माना जाता है।

इस बारे में कंपनी के चीफ एग्‍जीक्‍यूटिव ऑफ‍िसर ग्रेग बियर्ड ने कहा कि बिटकॉइन माइनिंग नेटवर्क दुनिया का सबसे बड़ा डीसेंट्रलाइज्‍ड कंप्यूटर नेटवर्क है। इसमें बेतहाशा बिजली खर्च होती है। इसीलिए बिटकॉइन माइनिंग के लिए सही पावर प्लांट का पता लगाना बहुत मायने रखता है।
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बिटकॉइन माइनिंग को लेकर ‘स्ट्रॉन्गहोल्ड डिजिटल माइनिंग' की पहल अच्‍छी है। लेकिन हर कोई ऐसा नहीं कर रहा। इस साल की शुरुआत में आठ अमेरिकी सांसदों ने बिटकॉइन माइनिंग करने वालीं कंपनियों से यह बताने के लिए कहा था कि वो इस काम में कितनी बिजली इस्‍तेमाल करती हैं। 6 कंपनियों को लेटर भेजा गया था। कंपन‍ियों से पूछा गया था कि वो कितनी बिजली का इस्‍तेमाल करती हैं। वह बिजली कहां से आती है और कंपनियां बिजली उत्‍पादन बढ़ाने के लिए क्‍या योजना बना रही हैं। 
 
 

ये भी पढ़ेंभारतीय एक्सचेंजों में क्रिप्टोकरेंसी की कीमतें

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