BSNL को बड़ा झटका! कोर्ट ने लगाया 10.5 लाख रुपये का जुर्माना, जानें वजह

बीएसएनएल ने टिहरी निवासी प्रदीप पोखरियाल के साथ कॉन्ट्रैक्ट किया था, जिसके तहत, कंपनी ने पोखरियाल को मोबाइल सर्विस के वितरण और मार्केटिंग के लिए एक डीलरशिप आवंटित की थी।

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Written by नितेश पपनोई, अपडेटेड: 24 जनवरी 2023 20:40 IST
ख़ास बातें
  • एक निचली अदालत ने BSNL को डीलर के 10.5 लाख रुपये लौटाने का आदेश दिया
  • BSNL ने इस फैसले को वाणिज्यिक अदालत में चैलेंज किया था
  • सभी तथ्यों पर विचार करने के बाद बीएसएनएल की याचिका खारिज कर दी गई

BSNL ने हाल ही में IPTV सर्विस भी शुरू की है

भारत संचार निगम लिमिटेड (BSNL) को देहरादून की एक निचली अदालत ने बड़ा झटका दिया है। राज्य के स्वामित्व वाली टेलीकॉम कंपनी को अपने डीलर को कथित तौर पर "गलत तरीके से सुरक्षा जमा जब्त करने" के लिए 10.5 लाख रुपये का भुगतान करना होगा। बीएसएनएल ने एक वाणिज्यिक अदालत में फैसले को चुनौती दी, जहां निचली अदालत के आदेश को एक अतिरिक्त जिला न्यायाधीश ने बरकरार रखा। 

TOI की रिपोर्ट के अनुसार, देहरादून की निचली अदालत ने स्पष्ट किया है कि BSNL एक ग्राहक के बिलों का भुगतान बंद करने के बाद भी उसे सर्विस प्रदान करना जारी रख रही थी। अदालत के आदेश के अनुसार, भुगतान करना बंद कर चुके ग्राहक को सेवाएं जारी रखना बीएसएनएल की गलती थी।

रिपोर्ट बताती है कि 2002 में, बीएसएनएल ने टिहरी निवासी प्रदीप पोखरियाल के साथ कॉन्ट्रैक्ट किया था, जिसके तहत, कंपनी ने पोखरियाल को मोबाइल सर्विस के वितरण और मार्केटिंग के लिए एक डीलरशिप आवंटित की थी। कथित तौर पर इस दो साल के कॉन्ट्रैक्ट के लिए कंपनी ने पोखरियाल से पांच लाख रुपये का सिक्योरिटी डिपोजिट लिया था।

दरअसल, रिपोर्ट के मुताबिक, हुआ यूं कि इस दौरान सुरेंद्र रटवाल नाम के एक यूजर को एक मोबाइल नंबर जारी किया गया, जिसने बिल भरना बंद कर दिया था और बकाया बिल की राशि 4.16 लाख रुपये तक पहुंच गई थी। ऐसा होने के कारण बीएसएनएल ने पोखरियाल के साथ कॉन्ट्रैक्ट समाप्त होने के बाद इसे 5 लाख रुपये की जमा राशि देने से इंकार कर दिया।

पोखरियाल ने इसके लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। उच्च न्यायालय ने मामले को सुलझाने के लिए जिला न्यायाधीश को नियुक्त किया। न्यायाधीश ने BSNL को 10.5 लाख रुपये का भुगतान करने का आदेश दे डाला, जिसके बाद इस फैसले को कंपनी ने वाणिज्यिक अदालत में चुनौती दी और फैसले को अवैध और "देश की सार्वजनिक नीति" के खिलाफ बता डाला।
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वहीं, दूसरी ओर डीलर का कहना था कि ग्राहक को मोबाइल फोन कनेक्शन जारी करने से पहले उसका पता वैरिफाई करना बीएसएनएल का कर्तव्य था। इतना ही नहीं, अदालत को बाद में यह भी पता चला कि बीएसएनएल ने एक ऐसे नंबर पर आईएसडी सुविधा को भी शुरू कर दिया था, जिसके बिल का भुगतान लंबे समय से नहीं हो रहा था। कंपनी ने अगले 18 महीनों तक इस नंबर पर अपनी सेवाएं देना भी जारी रखा।

आखिर में कोर्ट ने सभी तथ्यों पर विचार करने के बाद बीएसएनएल की याचिका खारिज कर दी।
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